ऑर्गेनिक द्रोणपुष्पी (Dronapushpi, Leucas Cephalotes, Gumma, Tumba, Spiderwort) के औषधीय उपयोग (Medicinal Uses)

 
ऑर्गेनिक द्रोणपुष्पी (Dronapushpi, Leucas Cephalotes, Gumma, Tumba, Spiderwort) के औषधीय उपयोग (Medicinal Uses)
 
(गुम्मा, तुम्बा, Dronapushpi, Leucas Cephalotes, Gumma, Tumba, Spiderwort) के औषधीय उपयोग (Medicinal Uses)

लेखक: आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा

  1. Botanical Name (वानस्पतिक नाम): Leucas Cephalotes-ल्यूकस सेफेलोट्स
  2. English Name (अंग्रेजी नाम): Spider Wort, Spiderwort-स्पाइडर वोर्ट
  3. Family (कुल): Lamiaceae (लेमिएसी) or Labiatae-लेबिएटे

Synonyms (पर्यायवाची):

  • हिन्दी-गुम्मा, गूमाडलेडोना, गोया, मोरापाती, धुरपीसग;
  • राजस्थानी-उडापता (Udapata), निडालू कुबी (Nidalu kubi)
  • संस्कृत-द्रोणपुष्पी, फलेपुष्पा, पालिंदी, कुंभयोनिका, द्रोणा;
  • कन्नड़-तुम्बे (Thumbai);
  • गुजराती-दोशिनाकुबो (Doshinokubo), कुबो (Kubo), कुबी (Kubi);
  • तमिल-कोकरातासिल्टा (Kocaratacilta), नेयप्पीरक्कू (Neyppirkku);
  • पंजाबी-छत्रा (Chatra), गुल्डोडा (Guldoda), मलडोडा (Maldoda);
  • मराठी-तुम्बा (Tumba), देवखुम्बा (Devkhumba), शेतवाद (Shetvad);
  • तेलुगु-पेड्डातुम्नी (Peddatumni), तुम्मी (Tummi) तुम्बई (Thumbai);
  • बंगाली-घलघसे (Ghalghase), बराहलकसा (Barahalkasa);
  • मलयालम-तुम्बा (Tumba);
  • नेपाली-सयपत्री (Syapatri);
वयस्कों के लिये दवाई की मात्रा:
  1. पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल तथा फल) का चूर्ण/पाउडर: 5 से 10 ग्राम।
  2. पत्तों का रस: 10 से 20 मिलीलीटर।
  3. पंचांग क्वाथ: 10 से 30 मिलीलीटर।

संग्रहण (Collection):
सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के पहले-दूसरे सप्ताह के दौरान अर्थात बरसात के मौसम की समाप्ति के बाद जैसे ही धूप निकलना शूरू हो तो इसके पौधे को जड़ से उखाड़ कर और छाया शुष्क करके इसका पंचांग बनाया जा सकता है। इसी प्रकार से हरे पत्ते और पकने पर इसके फलों को सुखाकर बीज संग्रहित किये जा सकते हैं। संग्रहित औषधि तत्वों को ठीक से सुखाकर सूखे और हवाबंद डब्बों में सुरक्षित किया जाना चाहिये।

द्रोणपुष्पी का सत बनाने की विधि:
द्रोणपुष्पी के रस में दो गुना पानी मिलाकर एक बर्तन में 24 घंटे के लिए स्थिर रख दें। 24 घंटे बाद ऊपर का पानी निथारकर फेंक दें और नीचे बचे हुए अवशेष/Residue-रेसेड्यू को किसी चौड़े बर्तन में फैलाकर छाया में सुखा लें। तीन चार दिन बाद जब यह अवशेष सूख जाये तो इसे संग्रहित करके हवाबंद कांच की बोतल में पैक करके रख लें। इसे ही द्रोणपुष्पी का सत कहते हैं। अनुभवी वैद्यों का मत है कि इसे प्रतिदिन आधा ग्राम की मात्र में लेने से सब प्रकार की व्याधियां समाप्त हो जाती हैं। और अगर कोई व्याधि नहीं भी है, तब भी इसे लेने से व्याधियों से बचे रहते हैं, प्रदूषणजन्य बीमारियों से भी बचाव होता है। अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित/मजबूत हो जाती है।

 

चेतावनी (Warning):
यहां प्रस्तुत विवरण केवल जनहित में औषधियों/दवाइयों, मानव स्वास्थ्य और बीमारियों के बारे में जागरूकता बढाने के लिए ही लिखा गया है। पाठक स्वयं अपना इलाज करने का खतरा मोल नहीं लें। कृपया अपने चिकित्सक के परामर्श के बिना, सुझाई गयी (किसी भी प्रकार की) दवा का सेवन नहीं करें। [Please Do not take any (kind of) suggested medicine, without consulting your Doctor.]
 

द्रोणपुष्पी के हानिकारक प्रभाव:
ठण्डी प्रकृति के लोगों को द्रोणपुष्पी का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक हो सकता है।

औषधीय उपयोग (Medicinal Uses): सर्वोत्तम परिणामों हेतु ऑर्गेनिक औषधि का ही उपयोग करें। (Use only organic medicine for best results):-

1. त्रिदोषनाशक: यह उन गिनीचुनी महा औषधियों में शामिल है जो वात, पित्त, कफ तीनों को नष्ट करती हैं।
 
2. साँप के काटने पर: यह विषहर है। यह हर प्रकार के जहर का असर खत्म करता है। द्रोणपुष्पी के बारे में अनेक लेखकों का मत है कि कितना भी जहरीला साँप क्यों न काटा हो, व्यक्ति को तुरंत द्रोणपुष्पी के पत्ते या टहनी को खिलाना चाहिए या इसके 10 से 15 बून्द रस पिला देना चाहिए। जहर के प्रभाव से यदि व्यक्ति बेहोश हो गया हो तो द्रोणपुष्पी के रस निकाल कर, उसके कान, मुँह और नाक के रास्ते टपका दें। उसकी बेहोशी टूट जायेगी। यदि दंशित व्यक्ति के शरीर में जान बाकी होगी तो निश्चित ही उसकी जान बच जायेगी। होश में आने के बाद उसे 4-5 घंटे तक तक सोन न दें।
 
3. बिच्छू दंश: द्रोणपुष्पी के पत्रों को पीसकर बिच्दू दंश स्थान पर बांधने/लगाने से विषाक्त प्रभाव नष्ट हो जाता है।
 
4. चर्म रोग (Skin Diseases): द्रोणपुष्पी एक्जिमा (Eczema) एवं एलर्जी सहित सभी प्रकार की त्वचा सम्बन्धी समस्याओं के उपचार के लिए उपयोगी है। यह रक्तशोधक माना जाता है। यही वजह है कि यदि त्वचा या रक्त सम्बन्धी कोई भी परेशानी है, सांप के जहर का असर है, कोई विषैला कीड़ा काट गया है, या चमड़ी/Skin पर Allopathy/ऐलोपैथी की दवाइयों का दुष्प्रभाव/Reaction हो गया है; तो इसके 5 ग्राम पंचांग में, 3 ग्राम नीम के पत्ते मिलाकर, दो गिलास पानी में उबाल लें। जब आधा गिलास बच जाए तो कुछ दिनों तक रोगी को सुबह-शाम पिलायें। सभी तकलीफों से मुक्ति मिलेगी।
 
5. विषैले द्रव्य नाशक (Antitoxins): सब्जियों, दूध, जंक फूड, तेल, खाद्य पदार्थों आदि में अस्वास्थ्यकर कीटनाशकों एवं अखाद्य द्रव्यों/पदार्थों की मिलावट के कारण मानव शरीर में अनेक प्रकार के विषैले द्रव्यों, कैमीकल्स/Chemicals, Toxins/विषाक्त पदार्थों आदि का जहर जमा हो जाता है। इनके कारण शरीर में दाद, खाज, खुजली, एलर्जी सहित विभिन्न प्रकार की बाहरी और आंतरिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। द्रोणपुष्पी के पंचांग/पाउडर का काढ़ा पिलाने से इनका समाधान संभव है। चर्मरोगों और अनेक प्रकार की एलर्जी सम्बन्धी बीमारियों को ठीक करने के लिए द्रोणपुष्पी के सत का भी सेवन किया जा सकता है।
 
6. साईनस/Sinus या पुराना सिरदर्द: साईनस/Sinus या पुराना सिरदर्द है तो द्रोणपुष्पी के रस में दो गुना पानी मिलाकर चार-चार बूँद नाक में डालें। 3-4 दिन करने से ही आराम मिल जायेगा और जमा हुआ कफ भी बाहर निकल जायेगा।
 
7. पुराना बुखार (Old Fever): पुराना बुखार जो बार बार आ जाता हो या जाता ही नहीं हो तो द्रोणपुष्पी की दो तीन टहनियों में गिलोय और नीम मिलाकर काढ़ा बनाकर कुछ दिन पिलायें। या दो चम्मच द्रोणपुष्पी के रस के साथ 5 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से बुखार ठीक हो जाता है।
 
8. विषम-ज्वर (Odd Fever): द्रोणपुष्पी की टहनी को पीस कर पुटली बनाले और उसे बाए हाथ के नाड़ी पर कपड़ा के सहयोग से बाँध दे। इसे रोगी का ज्वर बहुत ही जल्द ठीक हो जाता है। या 5 मिलीलीटर द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस में 1 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से मलेरिया ठीक हो होता है। 10-30 मिलीलीटर पंचांग पाउडर क्वाथ का सेवन करने से विषमज्वर ठीक हो जाता है।
 
9. यकृत रक्षक (Liver Protector): यदि किसी रोगी का लीवर खराब हो गया हो और काफी समय से ठीक नहीं हो रहा हो। उसका SGOT, SGPT बढा हुआ हो। या रोगी को पीलिया रोग हो रहा हो। तो द्रोणपुष्पी के काढ़े में कुछ दिनों तक 4-5 मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पिलायें।
 
10. यकृत वृद्धि+तिल्ली वृद्धि (Fatty Liver+Spleen Increase): द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ सुबह-शाम कुछ हफ्ते तक सेवन करने से जिगर बढ़ने का रोग दूर हो जाता है। तिल्ली वृद्धि (Spleen Increase) विकार में भी समान रूप से उपयोगी है।

11. संक्रमण रोधी (Anti Infective): किसी भी प्रकार के संक्रमण/Infection के लिये द्रोणपुष्पी अत्यधिक उपयोगी है। यहां तक कि कैंसर (Cancer) जैसी घातक समस्याओं से लड़ने में भी के लिए द्रोणपुष्पी का ताजा पंचांग या पाउडर, भृंगराज एवं देसी बबूल की पत्तियों का काढ़ा बनाकर नियमित रूप से रोगी को पिलाते रहें। इससे चिकित्सा में जटिलता कम होंगी। मगर कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर के निर्देशन में अन्य जरूरी दवाइयों का सेवन भी जारी रखें। उन इवाइयों के साक-साथ भी इसे ले सकते हैं।

12. शोथ (सूजन) (Inflammation): द्रोणपुष्पी और नीम के पत्तों की कौंपलों को पीसकर रोगी के सूजन वाले अंग पर गर्म-गर्म लेप लगाने से सूजन में आराम मिलता है।

13. खांसी-जुकाम (Cough & Cold): द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में आधा चम्मच बहेड़े का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है। या 5 मिली द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस में समान भाग शहद मिलाकर पीने से खांसी तथा प्रतिश्याय (जुकाम) में आराम मिलता है। द्रोणपुष्पी का रस नाक में 2-2 बूंद डालने से और उसका रस नाक से सूंघने से सर्दी दूर हो जाती है।

14. संधिवात (Rheumatoid Arthritis): ताजा द्रोणपुष्पी पंचांग का क्वाथ या द्रोणपुष्पी पंचांग के पाउडर के 10-30 मिली काढे में 1-2 ग्राम पिप्पली चूर्ण मिलाकर पिलाने से संधिवात में आराम मिलता है। या 10 मिली द्रोणपुष्पी स्वरस में शहद मिलाकर पिलाने से सभी वातविकारों में लाभ होता है।
 
15. सिरदर्द (Headache): द्रोणपुष्पी का रस 2-2 बूंद की मात्रा में नाक के नथुनों में टपकाने से और द्रोणपुष्पी का रस में 1-2 कालीमिर्च पीसकर माथे पर लेप करने से सिरदर्द में आराम मिलता है।
 
16. पीलिया (Jaundice): द्रोणपुष्पी के पत्तों का 1-1 बूंद रस आंखों और नाक में हर रोज सुबह-शाम कुछ समय तक लगातार डालते रहने तथा 5 मिलीलीटर स्वरस में समभाग शहद मिलाकर पीने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
 
17. श्वास, दमा, अस्थमा (Asthma): द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा रुक जाता है। इसके अलावा द्रोणपुष्पी के पत्र स्वरस समभाग अदरख एवं शहद मिलाकर विधिवत फांट तैयार करें। मात्र 6 माशे दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से अस्थमा ठीक हो जाता है।
 
18. दांतों का दर्द (Toothache): द्रोणपुष्पी का रस, समुद्रफेन, शहद तथा तिल के तेल को मिलाकर कान में डालने से दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं तथा दांतों का दर्द ठीक होता है।
 
19. सूखा रोग: सुखा रोग ख़ास कर छोटे बच्चों को होता है। द्रोणपुष्पी की टहनी या पत्तों को पीस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का लें और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करें। इस से बच्चों का सूखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है।
 
20. अनिद्रा (Insomnia): मात्र 10-20 मिली द्रोणपुष्पी बीज के क्वाथ का सेवन करने से अच्छी नींद आती है।
 
21. स्नायविक विकार (Neurotic Disorder): द्रोणपुष्पी पत्र-क्वाथ का सेवन करने से स्नायविक विकारों में अराम होता है।

उपयोग: चिकित्सक के परामर्शानुसार ही सेवन करें।

वयस्कों के लिये दवाई की मात्रा:
  1. पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल तथा फल) का चूर्ण/पाउडर: 5 से 10 ग्राम।
  2. पत्तों का रस: 10 से 20 मिलीलीटर।
  3. पंचांग क्वाथ: 10 से 30 मिलीलीटर।

ऑर्गेनिक औषधि अधिक प्रभावी:
(Organic Herb More Effective):

भारत सरकार की कृषि नीति किसानों के हित में नहीं होने के कारण किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। जो किसानों की दुर्दशा का मूल कारण रहा है। इस कारण किसी भी तरीके से किसान अधिकतम उपज चाहता है। अत: किसानों द्वारा उपज बढाने के लिये अस्वास्थ्यकर रासायनिक उर्वरकों/खादों एवं कीटनाशकों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। (Therefore, more and more unhealthy chemical fertilizers and pesticides are used to increase yield by farmers) जिसके कारण फसल के साथ-साथ खेतों में उगने वाली वनौषधियां (Herbal Remedies) भी अप्रभावी या विषैली/विषाक्त) (Ineffective or Toxic) हो जाती हैं। जिनका औषधीय प्रयोग (Medicinal Use) करने से वांछित उपचारात्मक परिणाम (Desired Remedial Results) नहीं मिल पाते हैं। अत: उपज कम और लागत अधिक होने के बावजूद रोगियों के इलाज हेतु जैविक/ऑर्गेनिक/कार्बनिक पद्धति से उत्पादित (Produced by Organic Method) वनौषधियों का ही उपयोग किया जाना चाहिये। लेकिन ऑर्गेनिक वनौषधियों का बाजार में मिलना मुश्किल ही नहीं, असंभव सा होता जा रहा है। इसी वजह से हमारे द्वारा कुछ महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों का छोटे स्तर पर ऑर्गेनिक पद्धति से उत्पादन और, या संग्रहण किया जाना शुरू किया गया है। इसी क्रम में ऑर्गेनिक हुलहुल भी हमारे यहां उपलब्ध है। जिसे जरूरतमंद लोगों को निजी उपयोग हेतु अल्प मात्रा में घर बैठे डाक के जरिये रजिस्टर्ड पार्सल से भी पाउडर के रूप में उपलब्ध करवाया जाता है। लेकिन व्यापारियों के लिये बड़ी मात्रा में इसकी आपूर्ति करना संभव नहीं है।
 
लेखन दिनांक: 05.12.2018. संपादन दिनांक: 19.03.2020, 30.03.2020

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