एलोपैथी के चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन-Migraine

 

एलोपैथी के चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन-Migraine

नोट: माइग्रेन से पीड़ित रोगियों के अनुभवों से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति से माईग्रेन का स्थायी उपचार सम्भव नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि ऐलोपैथिक दवाइयां माइग्रेन के भयंकर दर्द से तत्काल राहत प्रदान करने में बेजोड़ सिद्ध हो रही हैं। इसके बावजूद भी आधुनिक विज्ञान अर्थात ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में अत्यधिक विश्वास रखने वाले मरीजों की जानकारी के लिये बताना जरूरी है कि ऐलोपैथ चिकित्सक माइग्रेन के बारे में क्या सोचते हैं? अत: यहां ऐलोपैथिक चिकित्सकों के अनुभवों पर आधारित जानकारी, संकलित करके प्रस्तुत की जा रही है।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन क्या है?
माइग्रेन (Migraine) एक प्रकार का मस्तिष्क का रोग या विकार है, जिसमें रोगी को भयंकर और असहनीय सिरदर्द होता है। इसे आम बोलचाल में आधासीसी भी कहा जाता है। यह प्राय: शाम के समय प्रारंभ होता है। इसमें दर्द 2 से 72 घंटे तक हो सकता है।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन के कितने प्रकार होते हैं?
माइग्रेन दो प्रकार के होते हैं :
(1) एपिसोडिक माइग्रेन (Episodic Migraine) (प्रासंगिक माइग्रेन)
(2) क्रोनिक माइग्रेन (Chronic Migraine) (दीर्घकालिक माइग्रेन)

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन में कौन से अंग प्रभावित होते हैं?
इस में सिर में एक तरफा दर्द होता है। इसलिए आम बोलचाल की भाषा में इसे आधासीसी, अधकपारी, अर्द्धसिरशूल आदि नामों से भी पुकारा जाता है।

ऐलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन के लक्षण?
माइग्रेन में जी का मिचलाना, वोमिटिंग, फोटोफोबिया (Photophobia) (प्रकाश वृद्धि पर संवेदनशील होना), फोनोफोबिया (ध्वनि वृद्धि में संवेदनशीलता) और शारीरिक गतिविधियों का बढ़ जाना प्रमुख लक्षण है। सेरेब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex) (मस्तिष्क की बाहरी परत है, जो कि टिशू होता है) में वृद्धि के कारण उत्तेजना और दर्द अधिक होता है।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन के कारण?
मौसम में बदलाव (खासकर मानसून में इसके मरीजों की संख्या कई गुनी बढ़ जाती है), वातावरण में होने वाला शोर-शराबा, मोटर-गाड़ी की आवाज, शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, रोशनी का अधिक और कम होना, तनाव, भावात्मक तनाव, कम सोना, धूम्रपान करने से तथा अन्य कई कारकों से माइग्रेन के रोगी प्रभावित होते हैं।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन से कौन अधिक प्रभावित होते हैं?
माइग्रेन किशोरावस्था से पहले लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक प्रभावित करता है, लेकिन वयस्क अवस्था में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में माइग्रेन होने की आशंका अधिक होती है। यद्यपि ऐसा देखा गया है कि प्रसव काल के दौरान इसकी आशंका काफी कम हो जाती है।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन में बढोतरी के कारण?
अपने देश में माइग्रेन बढ़ने की वजह लोगों की जीवनशैली में तेजी से आया बदलाव है। इस कारण कॉर्पोरेट कल्चर में बेहतर मांग को लेकर आम लोगों के जीवन में हमेशा तनाव रहता है। हालांकि माइग्रेन को लेकर कोई एक सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है। यह एक मस्तिष्क विकार माना जाता है। इसका प्राथमिक सिद्धांत यह है कि अधिकतर लोग जानकारी के अभाव में दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन में बढोतरी के प्रमुख कारण?
माइग्रेन के मरीजों की संख्या में वृद्धि होने की मुख्य वजह हमारी बदलती जीवनशैली है। दुनियाभर के 15 प्रतिशत लोग माइग्रेन से पीडित हैं। वर्ष अर्थात 2013 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 6 फीसदी पुरुष और 18 फीसदी महिलाएं माइग्रेन से प्रभावित हुई, जबकि यूरोप में 2016 में माइग्रेन से 12 से 18 प्रतिशत तक आबादी प्रभावित हुई। इनमें 6 से 15 प्रतिशत पुरुष और 14 से 35 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। क्रॉनिक माइग्रेन से विश्व की कुल जनसंख्या में से 1.4 से 2.2 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं। सिरदर्द पश्चिमी देशों की तुलना में एशिया और अफ्रीका में कम है, लेकिन इसके बारे में सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन का इलाज?
एलोपैथ चिकित्सकों का मानना है कि इस बीमारी का इलाज दो तरह से होता है। पहला एक्यूट ऑपरेटिव ट्रीटमेंट और दूसरा प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट (Acute Operative Treatment and second Preventive Treatment)। इस बीमारी में उपचार का पहला उद्देश्य लक्षणों को दूर करना होता है। उसके बाद सिरदर्द को कंट्रोल करना पड़ता है। माइग्रेन में प्राथमिक उपचार का लक्ष्य आवृत्ति, तीव्रता और सिरदर्द को कम करना होता है। इस उपचार में मरीज को कम से कम तीन महीने और कुछ स्थिति में छ: महीने तक नियमित रूप से दवा लेनी चाहिए। रोगी को इस बीमारी में प्राथमिक उपचार कराना चाहिए और डॉक्टर की सलाह से दवा लेनी चाहिए। उपचार निवारक पद्धति में पहले दवा की कम खुराक दी जाती है और धीरे-धीरे खुराक को तब तक बढ़ाया जाता है, जब तक कि दर्द से निजात न मिल जाए। इस पद्धति में मरीज को दवा का साइड इफेक्ट न हो, इसका भी पूरा ख्याल रखा जाता है। भावनात्मक उपचार द्वारा प्राय: असंवेदनशील रोगियों का इलाज किया जाता है।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार एक्यूपंचर चिकित्सा:
एक्यूपंचर चिकित्सा प्रासंगिक माइग्रेन और दीर्घकालिक माइग्रेन, दोनों में कारगर बतायी जाती है, परंतु एलोपैथ डॉक्टर्स का कहना है कि उनके शोधों के परिणामों के अनुसार यह पता चलता है कि एक्यूपंचर का प्रभाव दवा की तुलना में आभासी/दिखावटी ही होता है। स्थायी प्रभाव नहीं मिलते हैं।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन से बचाव हेतु सावधानियां?
एलोपैथ डॉक्टर्स का अनुभव है कि यह रोग हवा और धूप के पड़ने से 30 प्रतिशत बढ़ जाता है। रोशनी और सोने की अनियमित आदतें माइग्रेन बढ़ने का प्रमुख कारण है। मौसमी सिरदर्द 75 प्रतिशत दूषित पर्यावरण और 46 प्रतिशत अन्य कारणों से होता है। प्रत्येक 9 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान बढ़ने पर 7.5 प्रतिशत बीमारी बढ़ने का जोखिम रहता है। समझदारी और जानकारी इस बीमारी से बचाने में मददगार हो सकती है। इससे बचने के लिए एक डायरी बनाएं, जिसमें माइग्रेन से संबंधित सभी तथ्यों का समावेश होना चाहिए। मसलन पहली बार सिरदर्द होने पर कितनी देर तक सिरदर्द हुआ और उसके लक्षण क्या थे, सिरदर्द पहले से ज्यादा हो रहा है या कम, इस दौरान कौन सी दवाएं ली गईं आदि।

एलोपैथ चिकित्सकों के अनुसार माइग्रेन से बचाव के उपाय:

  • 1. अधिक से अधिक पानी पिएं।
  • 2. भीड़-भाड़ वाले स्थान पर जाने से बचें।
  • 3. कॉफी का सेवन करना लाभदायक होता है, लेकिन सीमित मात्रा में।
  • 4. सूर्य की रोशनी से दूर रहें।
  • 5. स्नान के समय वॉशरूम की लाइट ऑफ रखा करें।
  • 6. नियमित समय पर खाना खाएं और सोएं।
  • 7. सिरदर्द अधिक होने पर बर्फ के गोले से सेंक करें।
  • 8. अनजान दवाओं का सेवन न करें।
  • 9. हार्मोन की नियमित जांच करवाएं।
  • 10. काले चश्मे का प्रयोग करें, जो आपको धूप से बचाए।
  • 11. रात में अच्छी नींद लें।
  • 12 .अपनी कार्य क्षमता को जानें और तनाव से मुक्त रहें।
  • 13. सोते समय कमरे की बत्ती बुझा दें।

मेरी टिप्पणी:
होम्योपैथी और पराम्परागत देशी ऑर्गेनिक (Organic) जड़ी-बूटियों के जरिये माइग्रेन के 80 फीसदी रोगियों का स्थायी उपचार सम्भव है, जबकि 10 फीसदी रोगियों को यदा-कदा हानिरहित दवाईयों का सेवन करना पड़ सकता है। 10 फीसदी रोगी ऐसे भी होते हैं, जिन्हें नियमित रूप से दवाईयों का सेवन करना होता है। जिनसे किसी प्रकार की शारीरिक हानि नहीं होती है। इस विषय में शीघ्र ही अलग से जानकारी प्रस्तुत की जायेगी।-डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा।
लेखन: 23.07.2017, सम्पादन: 17.03.2019, सम्पादन: 06.01.2020

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