अल्पशुक्राणुता की बड़ी वजह-शराब, जंक फूड और कम नींद-Major Reason of Oligospermia: Wine, Junk Food and Less Sleep

 
जैसे-जैसे मानव तरक्की कर रह है, वैसे-वैसे वह अनेक प्रकार की बीमारियों तथा तरह-तरह की कमजोरियों से पीड़ित या ग्रसित होता जा रहा है। इसी प्रकार की एक समस्या है-शुक्राणूहीनता या अल्पशुक्राणुता। अकेले  भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व के अनेक देशों में पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या में तेजी से कमी आ रही आ रही है। हम जानते हैं कि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या में कमी से प्रजनन प्रभावित होता है। अत: पुरुषों में बांझपन का प्रतिशत भी बढता जा रहा है।
 
स्पर्म काउंट यानी वीर्य में शुक्राणु की संख्या में कमी, जिसे अंग्रेजी की आम बोलचाल में लेस स्पर्म काउंट (Less Sperm Count) या लो स्पर्म काउंट (Low Sperm Count) भी कहा जाता है। इसका इसका संबंध दैनिक जीवनचर्या, मानसिक तनाव और दैनिक खान-पान से भी है।
 
हम जिस तरह से अपना जीवन जीते हैं, जैसा सोचते हैं, उससे हमारी मानसिक स्थिति निर्मित होती है। जिसका हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है। यही नहीं हमारे खानपीन का भी हमारी शारीरिक गतिविधियां पर भी असर होता है।
 
अमरीकी वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि जिन लोगों के भोजन में वसा (Fat) की मात्रा अधिक है या जो जंक फूड अधिक खाते हैं, तो उनके स्पर्म काउंट में निश्चित तौर पर कमी आनी ही है।
 
 
अमरीका के एक फर्टिलिटी क्लिनिक (Fertility Clinic) में 99 पुरुषों पर स्टडी की गई। इस स्टडी में पता चला कि जो पुरुष जंक फूड अधिक खाते हैं, उनके शुक्राणु की गुणवत्ता काफी कमजोर थी। इस स्टडी के अनुसार जो अधिक वसायुक्त भोजन खाते हैं, उनका स्पर्म काउंट 43 फीसदी कम पाया गया। उनकी शुक्राणु की सघनता (Density) भी कम होती है। अर्थात उनके वीर्य में गाढापन नहीं होता है। भारत में इस बारे में कोई आधिकारिक अध्ययन के आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन
 
भारत में फर्टिलिटी क्लिनिकों पर पुरुष रोगियों की बढती संख्या इस बात का प्रमाण है कि भारत भी इस समस्या से अछूता नहीं है।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार किसी पुरुष के एक मिलीलीटर वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 1.5 से 3.9 करोड़ होने पर, उस वीर्य को संतान उत्पन्न करने के लिये सामान्य माना जाता है। वहीं वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि यदि एक पूर्ण रूपेण स्वस्थ पुरुष के वीर्य में पांच करोड़ से 15 करोड़ तक शुक्राणु की संख्या होती है तो ऐसी स्थिति में वीर्य निष्कासन के तत्काल बाद महिलाओं के फैलोपियन ट्यूब (Fallopian Tubes) में शुक्राणु तैरने लगता है। जिससे गर्भाधान (Conception) तुरंत और आसानी से हो जाता है।
 
यद्यपि गर्भाधान (Conception) एक प्रकृतिदत्त ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सब कुछ बहुत आसान भी नहीं होता है। अनेकों बार एक शुक्राणु/स्पर्म ही स्त्री के अंडाणु में प्रवेश करके गर्भाधान/गर्भधारण के लिए पर्याप्त होता है। जिसके लिये बहुत सारी परिस्थियां जिम्मेदार होती हैं। जिनमें पुरुष के वीर्य में पर्याप्त स्वस्थ शुक्राणुओं की उपस्थिति के साथ-साथ, यौन सम्बन्ध बनाते समय स्त्री-पुरुष की मनोस्थिति (Mood), सेक्स के लिये अपनाया जाने वाला आसन (Posture Used for Sex) और स्त्री के प्रजनन अंगों की सफाई एवं स्वस्थता प्रमुख (Cleanliness and well-being of the reproductive organs of a woman) तथा आधारभूत कारक (Fundamental Factors) हैं।
 
जिन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी हो, उनके लिये ही नहीं, बल्कि स्वस्थ पुरुषों को भी यदि अपने वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या पर्याप्त तथा स्वस्थ बनाये रखनी है तो उन्हें निम्न बातों पर अवश्य ही विशेष ध्यान देना चाहिये:-
 
1. शराब बंद: शराब का सेवन बिल्कुल बंद कर दें। क्योंकि शराब के सेवन से टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन्स (Testosterone Hormones) में कमी आती है। इस हॉर्मोन का सीधा संबंध यौन क्षमताओं से होता है।
2. नियमित व्यायाम: अपने आप को शारीरिक रूप से फिट बनाये रखें और कम से कम युवावस्था में तो तोंद नहीं बढने दें। जिसके लिये नियमित रूप से कसरत यानी व्यायाम (Exercise) करें, लेकिन अत्यधिक कसरत भी नहीं करें। (Do not exercise too much)
3. गर्म पानी से नहाने से परहेज: जिन पुरुषों को अल्प शुक्राणुता (Oligospermia) की समस्या है, उन्हें विशेष रूप से गर्म पानी से नहाने से परहेज करना चाहिये। अनेकानेक अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि स्पर्म प्रोडक्शन (Sperm Production) के लिए कम तापमान का होना जरूरी होता है। गर्म पानी से नहाने से अंडकोष का तापमान नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। जिससे स्पर्म काउंट पर सीधा नकारात्मक असर पड़ता है।
4. टाइट अंडरवेयर नहीं पहनें: अधिक तंग यानी टाइट अंडरवेयर नहीं पहनें। भारत में कसरत करवाते समय अनेक पुराने लोग युवाओं को तंग लंगोट बांधने की सलाह देते हैं, जो 100 फीसदी गलत है।
5. यौन संक्रमण: यौन संक्रमण (Sexual Infections) से बचकर रहें। जिसके लिये स्व अनुशासन ही एकमात्र उपाय है (Self discipline is the only solution), क्योंकि कौन स्त्री या पुरुष यौन संक्रमित हो सकता है, इसका पता उनकी शक्ल देखकर नहीं लगाया जा सकता। यदि किसी के साथ यौन सम्बन्ध बनाना बहुत जरूरी हो तो कंडोम का इस्तेमाल अवश्य करें।
6. पर्याप्त नींद: स्वस्थ बने रहने के लिये पर्याप्त नींद बहुत जरूरी होती है। अत: नींद का सीधा संबंध सेहत से है। अगर सात से आठ घंटे भी नींद नहीं ली जाये तो इससे प्रजनन क्षमता कुप्रभावित हो सकती है।
7. कम नींद, कम शुक्राणु: एक स्टडी के अनुसार जो लोग रोजाना 6 घंटे से भी कम सोते हैं।उनकी प्रजनन क्षमता में 35 फीसदी तक कमी होने की संभावना देखी गई है। अत: अच्छी नींद, अच्छी सेहत और स्वस्थ एवं पर्याप्त शुक्राणुओं के उत्पादन के लिये बहुत जरूरी है। हमेशा याद रखें-कम नींद, कम शुक्राणु और पर्याप्त नींद, पर्याप्त शुक्राणु।
 
किसी पुरुष के एक मिलीलीटर वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 1.5 करोड़ से कम होने पर उसे अल्प शुक्राणुताग्रस्त माना जाकर उपचार की सलाह दी जाती है। जिसके अनेक तरीके हैं। सभी चिकित्सा पद्धतियों में इसके लिये अनेक प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन स्त्रियों की ही भांति पुरुषों के मन में भी शर्म, संकोच, झिझक और घबराहट इस समस्या को बढाने में योगदान देते हैं।
 
इस विषय में यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रेसा में एन्डोक्रनॉलजी के प्रोफेसर डॉ अल्बर्टो फर्लिन के नेतृत्व में में की गयी एक अन्य स्टेडी के तथ्यों के बारे में जानकारी देना भी जरूरी समझता हूं।
 
स्टेडी के अनुसार पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या में कमी का मतलब केवल उनकी प्रजनन क्षमता पर सवालिया निशान नहीं है, बल्कि इस समस्या से यह पता चलता है कि ऐसे पुरुषों को कई प्रकार की अन्य तरह की भी स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
 
उक्त अध्ययन से यह बात सामने आई है कि शुक्राणुओं की संख्या में कमी यह बताती है कि ऐसे पुरुष के शरीर में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है।
 
शुक्राणुओं की कम संख्या वाले 5,177 पुरुषों पर एक स्टडी की गई। स्टडी से पता चला कि इनमें से 20 फीसदी लोग मोटापे, उच्च रक्त चाप और बीमार करने वाले कोलेस्ट्रॉल से ग्रसित थे।
 
इसके साथ ही इनमें टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की भी कमी पायी गयी। इस स्टडी का कहना है कि जिन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम है, उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्याओं की भी जांच करानी चाहिए।
 
वीर्य में शुक्राणुओं की कमी या वीर्य की गुणवत्ता में गिरावट के कारण हर तीन में से एक जोड़ा मां-बाप बनने की समस्या से जूझ रहा है। इस नयी स्टडी में डॉक्टरों ने इटली में पता किया की है जो पुरुष प्रजनन क्षमता से जूझ रहे हैं, उनके सामान्य स्वास्थ्य में भी कुछ समस्याएं होती हैं।
 
स्टडी का कहना है कि जिन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम है वो मेटाबोलिक सिंड्रोम* से जूझ रहे हैं। इनका वजन लंबाई के हिसाब से ज्यादा होता है और इनमें हाई ब्लड प्रेशर की आशंका बनी रहती है। इन हालातों में डायबीटीज, दिल की बीमारी और स्ट्रोक की भी आशंका प्रबल होती है।
 
*मेटाबोलिक सिंड्रोम यानी (Metabolic Syndrome) Metabolic syndrome a cluster of biochemical and physiological abnormalities associated with the development of cardiovascular disease and type 2 diabetes. (मेटाबोलिक हाइब्रिड (मेटाबोलिक सिंड्रोम- उपापचयी लक्षण) मेटाबोलिक सिंड्रोम हृदय रोग और टाइप 2 मधुमेह के विकास से जुड़े जैव रासायनिक और शारीरिक असामान्यताओं का एक समूह है।)
 
इसके साथ ही इस तरह के पुरुषों में सामान्य से 12 गुना कम टेस्टोस्टेरोन हार्मोन होता है जो कि यौनेच्छा (Sex Desire) को जगाता है। जिसके कारण मांसपेशियों के कमजोर होने की भी आशंका रहती है और कुछ मामलों में हड्डियां भी पतली होने लगती हैं। हड्ड़ियां कमजोर होने जाने पर, छोटी चोट लगने पर भी उनके टूटने की आशंका प्रबल हो जाती है।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रेसा में एन्डोक्रनॉलजी के प्रोफेसर डॉ अल्बर्टो फर्लिन के नेतृत्व में ये स्टडी की गई है। उन्होंने कहा,
 
”प्रजनन क्षमता में गिरावट से जूझ रहे पुरुषों के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि वो इसके साथ कई और समस्याओं से जूझ रहे हैं। समस्या केवल उनकी प्रजनन क्षमता का ही नहीं है, बल्कि उनके जीवन का भी है। प्रजनन क्षमता का मूल्यांकन पुरुषों के लिए एक अच्छा मौका होता है कि वो अपने शरीर की अन्य बीमारियों को भी पकड़ सकें।”
 
हालांकि इस स्टडी के लेखक का कहना है कि वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम होना मेटाबोलिक समस्या होने का प्रमाण नहीं है, लेकिन दोनों समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
 
इस रिसर्च टीम का कहना है कि टेस्टोस्टेरोन में कमी का संबंध इन समस्याओं से सीधा है। डॉ. फर्लिन का कहना है कि अगर कोई पुरुष अपनी प्रजनन क्षमता की जांच कराने जाता है तो उसे प्रॉपर हेल्थ जांच करानी चाहिए। जिससे अन्य समस्याओं का भी पता चल सके।
 
डॉ. फर्लिन का कहना है कि ”जो पुरुष पिता नहीं बन पा रहे हैं, उन्हें स्पर्म के साथ कई चीजों की जांच कराने की जरूरत है।” कई विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा कम ही होता है कि जो पुरुष स्पर्म की गुणवत्ता की समस्या से जूझ रहे हैं वो शायद ही शरीर की अन्य समस्याओं की जांच कराते हैं।
 
इन हालातों में पेशेंट्स के लिये महंगी जांच और महंगी चिकित्सा बोझ बनती जा रही है। जिस पर परिवार के बजट या बचत का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। अत: भारत के संदर्भ में जहां आधुनिक चिकित्सा अत्यधिक महंगी बतायी जाती है, जिसके चलते अनेक लोग उपचार करवाना टालते रहते हैं। वहीं आयुर्वेद की ऑर्गेनिक (Organic) जड़ी-बूटियों की ताजा एवं शुद्ध अपलब्धता में कमी के कारण वांछित परिणाम नहीं मिल पाते हैं, जिससे रोगियों के मन में आयुर्वेद या देशी जड़ी बूटियों के प्रति विश्वास में कमी आ रही है।
 
अंतत: व्यथित व्यक्ति होम्योपैथी की शरण में आता है, लेकिन रोगी के केस को समझने और विश्लेषण करने के लिये जितने समय की जरूरत होती है, सामान्यत: होम्योपैथ चिकित्सकों के पास उतना समय नहीं होता है। न हीं पेशेंट समय की कीमत भुगतान करने की स्थिति में होते हैं। ऐसे में उनका सही से उपचार नहीं हो पा रहा है।
 
इस कारण न मात्र शुक्राणुहीनता या अल्पशुक्राणुता से ग्रस्त रोगी ही परेशान हैं, बल्कि सभी जटिल बीमारियों के उपचार में यह स्थिति बाधक बनती जा रही है। जिसे आसान और सुगम बनाने के लिये सरकारी स्तर पर तत्काल उचित कदम उठाये जाने की सख्त जरूरत है।
 
वहीं दूसरी ओर सरकारी क्षेत्र में रोगियों के प्रति चिकित्साकर्मियों का रूखा तथा असंवेदनशील व्यवहार भी सरकारी अस्पतालों पर अविश्वास की बहुत बड़ी वजह है, जिसके चलते निजी क्षेत्र फल फूल रहा है। निजी क्षेत्र में भी हमारे बीच के ही इंसान होते हैं, लेकिन निजी क्षेत्र में जाकर वे अत्यंत नम्र और संवेदनशील हो जाते हैं। आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब एवं इसका समाधान सरकार को तलाशने की जरूरत है। यदि सरकारी क्षेत्र में चिकित्साकर्मियों का रूखा तथा असंवेदनशील व्यवहार बदलकर नम्र एवं संवेदनशील हो जाये तो अनेकानेक निर्धन पेशेंट्स की बहुत सी शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का बहुत कम कीमत में समाधान संभव है। लेखन दिनांक: 08 जनवरी, 2019 Edited -15.01.2019

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