बंदाल: आसानी से उपलब्ध एक बहुमूल्य और बहुउपयोगी औषधि

 

बंदाल: आसानी से उपलब्ध एक बहुमूल्य और बहुउपयोगी औषधि

लेखक: आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
आज आपको बंदाल, विदाली, देवदाली, सोनैया, घघरेल, घसरान, विधाधरावेला, धुमाराना, जीमूतक, खरागरी आदि अनेक नामों से जानी जाने वाली आसानी से उपलब्ध एक बहुमूल्य और बहुउपयोगी आदिवासी औषधि (Tribal Herb) के बारे में जनहित में स्वास्थ्य रक्षक जानकारी प्रदान की जा रही है। जिसे भारत के अलावा विश्व के अनेक देशों के आदिवासी सदियों से अपनी स्वास्थ्य रक्षा हेतु उपयोग करते रहे हैं।

नोट: कृपया यहां दी गयी जानकारी को ध्यान से पढें। दिये गये चित्रों को ध्यान से देखें और जनहित में अवगत करवायें कि आपके क्षेत्र में इसे किस नाम से जाना जाता है और किस-किस बीमारी के उपचार हेतु उपयोग किया जाता है?

यह एक प्रकार की लता यानी बेल होती है जो गांवों के आसपास और खेंतों की चारदीवारी पर बरसात में अपने आप उग आती है। इसकी बेल के पत्ते और फल कांटे वाले करेला से मिलते जुलते होते हैं। यहां चित्र में देखकर इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।

सेवन से पहले जानें इसके नुकसान (Side Effects): बंदाल के सेवन से भयंकर उल्टी हो सकती हैं। इसलिये छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इसका आंतरिक और बाहरी प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए। इसका सेवन किसी जड़ी बूटी के जानकार और, या किसी हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह के बिना नहीं किया जाना चाहिये।

उपयोग: स्वास्थ्य लाभ हेतु इस लता के पंचांग यानी पांचों अंग जैसे जड़, तना, पत्ते, फूल और फल उपचार हेतु उपयोग किये जाते हैं। जरूरत के अनुसार सभी अंगों का अलग अलग भी उपयोग किया जाता है। मैं अपने बुजुर्गों के साथ 13 साल की अल्पायु से इसका हजारों पीड़ितों को सेवन करवा चुका हूं। मुझे माइग्रेन और पीलिया एक साथ होने पर मैंने खुद ने भी 1981 में इसका सफलतापूर्वक सेवन किया था। तब से आज तक इन दोनों तकलीफों से सुरक्षित हूं।

प्रमुख उपयोग:

1. ल्यूकोरिया (Leucorrhea) श्वेत प्रदर: बंदाल की जड़ के 500 मिलीग्राम तक जड़ को चावल के धोवन से पीसकर शहद मिलाकर चाटने से ल्यूकोरिया का निदान होता है।
2. कुष्ठ: (Leprosy): इसके फल के चूर्ण में थूहर के दूध और आक के दूध की अलग-अलग सात बार भावना दें। फिर पीासकर पाउडर बना लें। इसके बाद 350 से 500 मिलीग्राग्राम की मात्रा में सावधानीपूर्वक सेवन कराने से कुष्ठ रोग में आश्चर्यजनक लाभ होता है। सेवन के दौरान नमक का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
3. बवासीर मस्से नाशक: बंदाल डोडे के फल और बीज को गोमूत्र के साथ पीसकर मस्सों पर लगाने से मस्से नष्ट हो जाते हैं।
4. बुखार: पित्त एवं कफ दोष के कारण होने वाला बुखार में इसके फल का स्वल्प मात्रा में सेवन करवाया जाता है।
5. लीवर और तिल्ली (Liver and Spleen) विकार नाशक: इसके फल या पंचांग के निश्चित अनुपात में सेवन से लीवर तथा तिल्ली के सभी प्रकार के विकार बहुत शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। साथ ही पाचन तंत्र भी मजबूत हो जाता है।
6. विषनाशक: कीट पतंगे और कीड़े-मकौड़ों के काटने पर इसकी जड़ या बीजों को पीसकर लेप करें। तुरंत दर्द कम होगा और घाव भी ठीक हो जाता है।
7. पीलिया (Jaundice) की दुश्मन: बंदाल एक तरह से पीलिया की शत्रु मानी जाती है। इसके सेवन से पीलिया 24 से 28 घंटे में ठीक हो जाता है। मगर सेवन अत्यल्प मात्रा में किसी अनुभवी व्यक्ति की देखरेख में ही करें। अन्यथा समस्या हो सकती है।

उपरोक्त के अलावा बंदाल, कब्ज, कूकर खांसी, सिरदर्द, माइग्रेन, आंतों के कृमि, सूजन आदि में भी बहुत लाभकारी है।

सेवन: कम से कम मात्रा में किसी जानकार की देखरेख में ही सेवन करें। यह औषधि जितनी अधिक उपयोगी है, अधिक सेवन करने पर उतनी ही घातक भी है।

किसी भी प्रकार की सलाह हेतु 8561955619 पर वाट्सएप कर सकते हैं। (प्लीज काल नहीं करें) हेल्थ अवेयरनेश की अधिक और नियमित जानकारी हेतु फेसबुक पर संचालित हेल्थ ग्रुप (https://www.facebook.com/groups/healthcarebyadiwasitau) एवं हेल्थ वेबसाइट (https://www.healthcarefriend.in) पर आपका स्वागत है।

जोहार यानी मां प्रकृति की जय हो।
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, काउंसलर, होम्योपैथ, परम्परागत उपचारक एवं संचालक-निरोगधाम, जयपुर, राजस्थान। 04.08.2021

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