स्वस्थ होने में कम-ज्यादा समय क्यों लगता है?

स्वस्थ होने में कम-ज्यादा समय क्यों लगता है?
 
सामान्यत: होम्योपैथिक (Homeopathic) चिकित्सा पद्धति में लक्षणात्मक (symptomatic), अर्थात लक्षणों पर आधारित (based on symptoms) चिकित्सा की जाती है। इस कारण एक जैसी तकलीफों से पीड़ित दो भिन्न पेशेंट्स को लक्षण भिन्न होने पर, भिन्न-भिन्न दवाइयां दी जा सकती हैं। मगर इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि एक जैसे रोग से पीड़ित एकाधिक या अधिकतर रोगियों को एक जैसी दवाइयां नहीं दी जा सकती हैं। इसके बावजूद भी कुछ अन्य कारण भी होते हैं, जबकि एक जैसे लक्षणों और एक जैसे रोग होने पर भी रोगी स्वस्थ होने में कम या अधिक समय लेते हैं। इस प्रकार के अनुभव आधारित कुछ तथ्य यहां प्रस्तुत हैं। नोट: सभी रोगियों के नाम बदले हुए हैं।
 
पाइल्स (piles) अर्थात बवासीर (खूनी बवासीर) की तकलीफ से पीड़ित मनीष, सुशील और देशराज तीन रोगियों के तकरीबन सभी लक्षण एक जैसे थे (Almost all the symptoms were the same)। अत: उन तीनों को पहली बार में एक साथ, एक जैसी दो-दो माह की दवाइयां भेजी गयी। मगर परिणाम अलग-अलग मिले। जिसकी वजह क्या रही? जानने के लिये तीनों के बारे में संक्षिप्त जानकारी पेश है:-
 
मनीष को मात्र 10% ही स्वास्थ्य लाभ हुआ। वजह वह मुझ से सम्पर्क करने से पहले बवासीर का एक बार ऑपरेशन करवा चुका था। जिसकी वजह से उसके पीड़ित अंगों के ज्ञान तंतु दवाइयों के साथ स्वाभाविक प्रतिक्रिया देने में अक्षम और कमजोर हो चुके थे। इस कारण उसके स्वास्थ्य में सुधार की गति बहुत धीमी रही। अंतत: उसे स्वस्थ होने में तुलनात्मक रूप से 5 गुना समय लग लगा। यहां यह बात ध्यान देने की है कि बवासीर का ऑपरेशन करवाना प्रथम नहीं, अंतिम विकल्प है और वह भी सफल नहीं है। क्योंकि बवासीर के कारण को समूल समाप्त किये बिना बवासीर से मुक्ति असंभव है।
 
सुशील को दवाइयां लेने के बाद भी कोई लाभ नहीं हुआ। वजह वह होम्योपैथिक दवाइयों के सेवन के दौरान, प्रतिबन्धित खानपीन के सेवन को रोक नहीं पाया। जैसे होम्योपैथक दवाइयों के सेवन के दौरान शराब, तम्बाकू उत्पाद और खुश्बू-बदबू से दूर रहना होता है। मगर ये महाशय गुटका खाते रहे, सिगरेट पीते रहे और शीघ्र स्वस्थ होने के लिये प्रतिदिन दो घंटे तक धूप-अगरबत्ती के सानिध्य में बैठकर पूजा-पाठ-प्रार्थना करते रहे। दो महिने बाद, इन्होंने सब कुछ त्याग दिया। इसके बाद फिर से उपचार शुरू किया गया और तीनों रोगियों में ये सबसे पहले स्वस्थ हो गये।
 
देशराज को 2 महिने की दवाई लेने के बाद तीनों रोगियों में सबसे तीव्र गति से 30-35% लाभ हुआ। मगर इन्होंने दो महिने बाद यह सोचकर आगे दवाई बंद कर दी कि जब 30-35% फायदा हो गया है तो शेष फायदा भी अपने आप हो ही जायेगा। बिना बात दवाइयों पर क्यों रुपये खर्च किये जावें। 8 महिने बाद फिर से इन्होंने सम्पर्क किया और दवाई शुरू की, तब तक इनकी तकलीफ काफी बढ चुकी थी। अत: इनको ठीक होने में मनीष से भी अधिक समय लग गया।
 
खुशी की बात है कि उक्त तीनों व्यक्ति आज पूर्णत: स्वस्थ हैं, लेकिन एक जैसी तकलीफ और समान लक्षण होने के बावजूद भी तीनोंं को स्वस्थ होने में कम-ज्यादा समय लगा। जिसके लिये चिकित्सा पद्धति या डॉक्टर नहीं, बल्कि रोगी एवं उनके हालात भी जिम्मेदार रहे। इसके अलावा भी बहुत से कारण जिम्मेदार होते हैं। जैसे:-
 
  • 1. रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता।
  • 2. रोगी का नशा करने का इतिहास।
  • 3. रोगी का प्रदूषण सहने का इतिहास।
  • 4. रोगी का वंशानुगत रोगों का इतिहास।
  • 5. रोगी के जीवन में तनाव, घुटन एवं दबाव।
  • 6. रोगी के पाचन तंत्र की स्थिति।
  • 7. रोगी की खाने, पीने और सोने-जागने की आदतें।
 
तीन रोगियों का उक्त अनुभव आम लोगों के मध्य साझा करने का मूल मकसद केवल इतना सी बात को समझाना है कि जब भी किसी भी डॉक्टर से इलाज करवायें तो कुछ महत्वपूर्ण बातों को अवश्य याद रखें। जैसे:-
 
  • 1. डॉक्टर को बेहचिक अपनी सभी तकलीफें और पूछने पर सभी लक्षणों को खुलकर बतायें। लेकिन जिस डॉक्टर के पास आपकी तकलीफ सुनने और जानने के लिये समय नहीं, समझें उसका प्रथम लक्ष्य आपको स्वस्थ करना नहीं है।
  • 2. डॉक्टर के दिशानिर्देशों तथा पथ्य-अपथ्य (Dietetic) का पूरी तरह से पालन करें।
  • 3. बेशक किसी भी चिकित्सा पद्धति से उपचार करावें, लेकिन जो भी खाद्य पदार्थ या पेय आपके लिये अस्वास्थ्यकर (Unhealthy) हों, उनका सेवन पूरी तरह से बंद कर दें।
  • 4. शुरूआत में आशानुरूप स्वास्थ्य लाभ नहीं मिले, तो जल्दबाजी में दूसरा डॉक्टर बदलने के बजाय अपने पहले वाले डॉक्टर को ही खुलकर अपने हालात से अवगत करावें।
  • 5. डॉक्टर द्वारा बंद नहीं करने तक, दवाइयों का निरंतर सेवन करना जारी रखें।
 
उम्मीद है, उक्त जानकारी जनहित में उपयोगी सिद्ध होगी। उचित समझें तो अपने मित्रों को भी पढवा सकते हैं।
 
लेखन दिनांक: 18.05.2019

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