एक निराश हो चुके पेशेंट का पेचीदा केस

 

एक निराश हो चुके पेशेंट का पेचीदा केस

वैसे तो जीवन में अनेक प्रकार के पेशेंट सामने आते रहे हैं। मगर प्रस्तुत प्रकरण उन कुछेक केसों में से एक है, जिनमें खुद पेशेंट ही अपने आपके स्वस्थ होने में दीवार बनके खड़ा होता है। यह केस जब मेरे पास आया तो पेशेंट पूरी तरह से निराश हो चुका था। उसने अपने मनोमस्तिष्क में इस बात को बिठा लिया था कि अब वो ठीक होने वाला नहीं है। उसने अपने आपको नपुंसक मान लिया था और साथ ही यह भी सेाचने लगा था कि अब उसे शेष जीवन ऐसे ही यानी एक नपुंसक के रूप में ही गुजारना होगा। यद्यपि वह स्वस्थ होना चाहता था। जिसके लिये कितना भी खर्च करने को तैयार था। इससे मुझे समझ में आ गया ​कि बेशक पेशेंट ने खुद को नपुंसक मान लिया हो, लेकिन वह स्वस्थ होने के लिये मुंहमांगी रकम खर्च करने को तैयार है, इसका मतलब उसके मन में ‘स्वस्थ होने की अदम्य इच्छा जिंदा है।’ मैंने इसी उम्मीद पर काम शुरू किया। जिसके लिये दवाइयों के साथ-साथ काउंसलिंग बहुत जरूरी थी।

सबसे पहले पेशेंट को निराशा की मनोस्थिति से बाहर निकाले के लिये उसकी पत्नी को सहयोग करने हेतु सहमत किया गया। पति-पत्नी दोनों की लगातार अनेकों बार काउंसलिंग करके, उन्हें विश्वास दिलाया गया कि वे सहयोग करेंगे तो वे फिर से सुखद दाम्पत्य जीवन का सुख भोग सकते हैं। जिस पर दोनों अलग-अलग फोन पर बात करने को सहमत हो गये। इसके बाद सब कुछ मेरे लिये उतना मुश्किल नहीं रहा और अंतत: उसका उपचार करना आसान हो गया। परिणाम हमारे सामने हैं। मैं पेशेंट के खुद के शब्दों को यहां उद्धरित कर रहा हूं:-

”ताऊजी वेसे तो आपने लंबी पूछताछ करके मेरी बहुत सी तकलिफो का इलाज कर ​दीया लेकिन मेरी बडी 2 तकलिफे थी जो बहुत इलाज के बाद भी 8 साल से ठीक नही हो रही थी आपके 8 महीना के इलाज से दोना 100 परसेट ठीक हो गई आपका जीदगीभर अहसान मानुंगा
पहली 2 से 3 दिन मे फ्रेस नहीं होता था दीनभर आलस मे पडा रहता था अब हरदिन 1 या 2 बार फ्रेस होता हू भूक भी अच्छे से लगने लगी हे मेरा वजन 46 से 55 हो गया हे गेस नही के बराबर हे
दूसरी तकलिफ सेक्स की बहूत इच्छा होती थी लींग मे उत्तेजना भी खूब आती थी लेकिन जेसे ही सेक्स शूरू करता लींग एकदम से ढीला हो जाता था और कुछ नही कर पाता था पत्नि के सामने शरमीदा था कई बार पत्नि ने छोटे शब्द भी बाले थे आपके इलाज और कोंसलिंग के बाद अब 1 महिना मे 7 8 बार सेक्स करता हू कोई दिक्कत नही होती

पहले बहूत कमजोरी थी आपके इलाज और कोंसलिंग के बाद ​जींदगी मे उत्साह भर गया हे 40 की एज मे 30 का अनूभव हो रहा हे मेरी पेसाब की जलन भी ठिक हो गई”

इस केस में कुछ बातें ऐसी हैं, जिन्हें पेशेंट की पहचान प्रकट करने वाले तथ्यों का उल्लेख किये बिना सार्वजनिक रूप से सामने लाना जनहित में जरूरी समझता हूं:-

1. 30 वर्ष की आयु तक पेशेंट पूर्ण स्वस्थ था। अचानक उसके परिवार के लोगों ने उसकी सम्पत्ति छीन ली। जिसका सदमा इतना गहरा हुआ कि पेशेंट के जीवन में से उत्साह गायब हो गया और अवसादग्रस्त होकर पागलों की जैसी हरकतें करने लगा।
2. इस स्थिति में पेशेंट की युवा पत्नी ने पेशेंट के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के बजाय उसे उलाहने देकर और उपहास करके उसे तिरस्कृत और अपमानित किया। पेशेंट को ऐसा संदेह हो गया कि उसकी पत्नी ने गैर मर्दों से सम्बन्ध बना लिये। यद्यपि उसकी पत्नी ने इससे साफ इनकार किया और इसे सिर्फ पति का वहम करार दिया। इन हालातों का पेशेंट पर नकारात्मक कुप्रभाव यह हुआ कि पेशेंट गम तथा निराशा में डूब गया और अपना आत्मविश्वास खो बैठा।
3. पेशेंट के पास ऐसा कोई आत्मीय व्यक्ति नहीं था, जिसे वह अपनी मनोव्यथा सुना सके। पत्नी भी उसकी अनदेखी कर रही थी। उसको संबल एवं विश्वास दिलाने वाला कोई नहीं था। कुछ रिश्तेदारों ने उसका मनोचिकित्सक से उपचार करवाया। जिसके उपचार से वह हमेशा नींद में पड़ा रहता था और उसका पाचन तंत्र खराब हो गया।
इसका दुष्परिणामस्वरूप यह हुआ कि वह संभोग करने में पूरी तरह से अक्षम हो गया। जिसकी कीमत पति-पत्नी दोनों को ही चुकानी पड़ी।
यहां पर मेरा कहना है कि जब भी कोई आपका अपना किसी कारण से मानसिक रूप से परेशान या दु:खी हो तो उसे अपमानित या तिरस्कृत करने के बजाय सहानुभूति और अपनापन प्रदान किया जाये तो हम उसके जीवन को बचा सकते हैं। जोहार।
आदिवासी ताऊ, WA No.: 8561955619, काउंसलर, मोटीवेटर, होम्योपैथ, परम्परागत जड़ी-बूटी उपचारक एवं संचालक-निरोगधाम, जयपुर, राजस्थान। 09.10.2021

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