वृद्धावस्था में मूत्रावरोध की समस्या युवावस्था में ही सावधानी जरूरी-Urethral Stricture

 
वृद्धावस्था में मूत्रावरोध की समस्या
युवावस्था में ही सावधानी जरूरी!
 
Urethral Stricture अर्थात मूत्र मार्ग का कड़ा होना या सिकुड़ जाना। सामान्यत: यह परिपक्व उम्र के पुरुषों की समस्या है। यद्यपि यह समस्या स्त्रियों में भी हो सकती है। जिसके कारण मूत्रमार्ग में रुकावट होती है और पेशाब करने में बाधा उत्पन्न होना। आमतौर पर विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा इसकी ओपन सर्जरी करने की सलाह दी जाती है और अधिकतर मामलों में उपचार हेतु इसकी सर्जरी ही की जाती है, लेकिन अधिकतर पेशेंट्स का कहना होता है कि-
 
  1. सर्जरी करने वाला सर्जन, सर्जरी से पहले पेशेंट को यह नहीं बतलाते कि सर्जरी के बाद क्या-क्या होता है?
  2. कितने मामलों में सर्जरी के बाद, बार-बार फिर से सर्जरी करनी पड़ सकती है और
  3. कितने फीसदी पेशेंट, कितने समय बाद मूत्र मार्ग की समस्या से पूरी तरह छुटकारा पा जाते हैं?
 
सर्जरी के बाद क्या कुछ होता है, यह केवल भुक्तभोगी ही जानता है। एक बात तो तय है कि इस सर्जरी के बाद यौन सुख को तो भूल ही जायें। सर्वाधिक दु:खद भुक्तभोगी बतलाते हैं कि बहुत कम मामलों में पूरी तरह से स्वाभाविक रूप से मूत्रत्याग एवं मूत्र नियंत्रण की स्थिति फिर से निर्मित हो पाती है। अत: मेरा मत है कि सर्जरी कराने का निर्णय जल्दबाजी में नहीं करें! 
 
सर्जरी पहला नहीं, बल्कि अंतिम विकल्प है,  लेकिन सर्जरी का विकल्प क्या है?
 
1. सलाह एवं सावधानियां: सबसे पहले तो कोशिश यह हो कि ऐसी स्थिति ही नहीं आने पाये। बिना बीमारी के भी कभी कभी विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह की जाये। जिससे कि युवावस्था से ही जरूरी सावधानी बरती जा सकें। आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा आमतौर पर निम्न सावधानियां बरतने की सलाह दी जाती है:-
  1. >Avoid injury to the urethra and pelvis.
  2. >Be careful with self-catheterization.
  3. >Use lubricating jelly liberally.
  4. >Use the smallest possible catheter needed for the shortest time.
  5. >Avoid sexually transmitted infections.
  6. >Gonorrhea was once the most common cause of stricture (abnormal narrowing of a canal or duct in the body).
  7. >Antibiotics have helped to prevent this.
  8. >Chlamydia is now the more common cause.
  9. >Infection can be prevented with condom use, or by avoiding sex with infected partners.
  10. >If a problem occurs, take the right antibiotics early. Urethral strictures are not contagious, but sexually transmitted infections are.
 
2. सर्जरी: जब तकलीफ हो ही जाये तो उपचार भी जरूरी हो जाता है, लेकिन याद रहे ‘सर्जरी पहला नहीं, बल्कि अंतिम विकल्प है।’
 
3. सर्जरी से बेहतर विकल्प: किसी अनुभवी उपचारक की देखरेख में अनादिकाल से आदिवासियों द्वारा प्रयोग की जाती रही जीवन रक्षक देशी जड़ी-बूटियों तथा होम्योपैथी की दुष्प्रभाव रहित दवाइयों के नियमित सेवन से शेष बची आयु यानी अपनी वृद्धावस्था को सुगमता से जीने हेतु कामचलाऊ या पूर्ण उपचार की उम्मीद की जा सकती है।
 
जो सर्जरी के बाद अनेक मामलों में होने वाली दर्दनाक दुर्गती से बेहतर विकल्प है। बेशक ताउम्र दवाइयां लेनी पड़ें।
 
आदिवासी जड़ी-बूटियों द्वारा उपचार:

एक दर्जन से अधिक आदिवासी देशी जड़ी-बूटियों द्वारा मूत्रत्याग सम्बन्धी तकलीफों का सफलतापूर्वक उपचार सम्भव है। रोगी की स्थिति के अनुसार निर्धारित मात्रा में आमतौर पर अग्रलिखित दवाइयों में से एक या एकाधिक का सेवन करवाया जाता है। मगर औषधियां शुद्ध, ताजा और ऑर्गेनिक होंगी तो ही वांछित परिणाम मिल सकेंगे।

1-कद्दू के बीज की गिरी, 2-कुलथी, 3-गोखरू छोटा, 4-गोखरू बड़ा, 5-गोरखबूटी, 6-पालक, 7-पुर्ननवा की जड़, 8-भूई आमला, 9-वासा, 10-सहदेवी इत्यादि।
 
रोगी के लक्षणानुसार होम्योपैथिक उपचार:
 
  • 1. Clematis Erecta-क्लेमैटिस इरेक्टा: मूत्रमार्ग की सिकुड़न या कड़ेपन के कारण बार-बार और कम मात्रा में पेशाब आता हो ऐसी शुरुआती स्थिति के लिए यह दवा उपयुक्त है।
  • 2. Chimaphila Ambellata-चिमाफिला अम्बेलाटा: जब मूत्रत्याग करने में कठिनाई होती है, पेशाब करने के लिये बहुत जोर लगाना पड़ता है।
  • 3. Cantharis-कैंथरिस: मूत्रत्याग की असहनीय इच्छा, लेकिन पेशाब में जलन के साथ बूंद-बूंद पेशाब टपकता है। संभोग की प्रबल इच्छा। दर्दनाक लिंग उत्तेजना और मूत्रत्याग की निरंतर इच्छा बनी रहती है।
 
उपरोक्त के अलावा भी अनेकों दवाइयां हैं। पेशेंट के सम्पूर्ण लक्षणों को जानने के बाद किसी अनुभवी होम्योपैथ द्वारा दवाइयों और दवाइयों की शक्ति का सही निर्धारण किया जा सकता है। खुद अपना उपचार नहीं करें।
 
नोट: यदि आप होम्योपैथी का उपचार लेने जा रहे हैं तो याद रहे कि एक डॉक्टर के लिये होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति ताउम्र श्रमसाध्य साधना होती है। जिसमें दवाइयों की कीमत से कई गुणी कीमत का डॉक्टर का जीवन (समय) खर्च होता है। जो भी पेशेंट उदारता पूर्वक डॉक्टर के समय का भुगतान कर पाते हैं, उनमें से अधिकतर स्वस्थ हो जाते हैं। खेद का विषय है कि अधिकतर पेशेंट जॉंच और दवाइयों के नाम से तो कितनी भी कीमत अदा कर सकते हैं, लेकिन डॉक्टर की फीस के नाम पर 500 रुपये से अधिक भुगतान करना ही नहीं चाहते। ऐसे में स्वस्थ होने की उम्मीद भी नहीं करें। जोहार।
 
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा संचालक: निरोगधाम, जयपुर, राजस्थान। हेल्थकेयर वाट्सएप: 8561955619, दिनांक: 09.03.2020 Edited: 29.08.2021

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