आदिवासी औषधि-सिंहपर्णी किड़नी विकारों में विशेष उपयोगी

आदिवासी औषधि-सिंहपर्णी किड़नी विकारों में विशेष उपयोगी

आदिवासियों में सिंहपर्णी का औषधीय उपयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। जिसके आधार पर आर्युवेद ग्रंथों में भी सिंहपर्णी की जड़ों, फूलों, पत्तों, तना आदि के गुणों के बारे में वर्णन मिलता है। हमारे पूर्वजों द्वारा अनादिकाल से अनेकानेक बीमारियों उपचार में इसका लगातार उपयोग किया जाता रहा है। मगर याद रहे कि केवल ऑर्गेनिक रीति से पैदा की गयी सिंहपर्णी ही औषधि उपयोग हेतु परिणामदायी सिद्ध होती है।

सिंहपर्णी एक मूत्रवर्धक औषधि है जो गुर्दे से बेकार और अतिरिक्त नमक तथा अतिरिक्त पेशाब को बाहर निकालने में मदद करती है। इसके साथ ही साथ यह सम्पूर्ण मूत्र प्रणाली में माइक्रोबियल विकास को रोकती है। सिंहपर्णी किड़नी विकार, पथरी, किड़नी फेल, किड़नी डायलिसिस आदि को रोकने में सक्षम है।

ऑर्गेनिक सिंहपर्णी की जड़ का पाउडर या इसके पत्ते, तने या पंचांग को उबालकर सेवन करने से मूत्र प्रणली दुरुस्त रहती है।

हम आदिवासियों द्वारा अनादिकाल से स्वास्थ्य संरक्षण हेतु उपयोग में लायी जा रही इस बहुमूल्य औषधि के साथ पेशेंट की प्रकृति एवं जरूरत के अनुसार कुछ अन्य औषधियों के सम्मिश्रण से प्रकृति की कृपा से हम पे अनेकों रोगियों की किडनी और लीवर बचाये हैं।

सिंहपर्णी हमारे निरोगधाम पर ऑर्गेनिक रीति से पैदा की जाती है। कुछ लोग इसकी मांग करते हैं, लेकिन खेद है कि अभी तक व्यापारियों को बेचन जितनी मात्रा में उपलब्ध नहीं है।

नोट-जानकारी उपयोगी लगे तो जनहित में शेयर की जा सकती है।
जोहार यानी प्रक़ति माँ की जय हो।
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा-8561955619, ऑनलाइन काउंसलर, होम्योपैथ और परम्परागत उपचारक। संचालक-निरोगधाम, जयपुर, राजस्थान।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *