बहुमूल्य औषधि हुलहुल के औषधीय उपयोग (Medicinal uses of Valuable Herb Hul-Hul)

 
 
बहुमूल्य औषधि हुलहुल के औषधीय उपयोग
(Medicinal uses of Valuable Herb Hul-Hul)
 
(बहुमूल्य और बहुउपयोगी स्वास्थ्य रक्षक ‘हुलहुल’ नामक औषधीय पौधे के बारे में महत्वपूर्ण और संग्रहणीय जानकारी)
 
लेखक: आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
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हमारे देश में ऐसी बहुत सी देशी जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। जो अनेक बीमारियों से मुक्ति दिलाकर स्वास्थ्य की रक्षा करती हैं। मैं 13 साल की आयु से इन पर काम कर रहा हूं और चाहता हूं कि जो ज्ञान तथा अनुभव हमने हमारे पूर्वजों (मेरे परदादा बहुत बड़े देशी वैद्य थे) से विरासत हासिल किया है, वह हमारे साथ दफन नहीं हो जाये। अत: जनहित में भावी पीढियों के लिये संकलित कर प्रस्तुत किया जा रहा है। इसी क्रम में स्वास्थ्य रक्षक बहुमूल्य और बहुउपयोगी हुलहुल नामक औषधीय पौधे के बारे में महत्वपूर्ण और संग्रहणीय जानकारी प्रस्तुत है।
 
हुलहुल का परिचय (Introduction of Hul-Hul):
यह एक वर्षीय शाकीय पौधा (Herbaceous Plant) है। वर्षा ऋतु में यह पुष्पित व फलित होता है तथा सड़कों के किनारे फुटपाथ पर आसानी से नजर आ जाता है। पौधे की ऊँचाई लगभग 1 मीटर तक होती है। पत्तियाँ 5 पालियों/हिस्सों में बँटी होती है और रोमिल होती हैं। यानी पत्तियों में बहुत हल्के रोम होते हैं। पुष्प पीले और सफेद रंग के होते हैं। फल, फली की तरह लम्बे, सम्पुटिका युक्त होते हैं। यह उष्ण कटिबन्धीय जलवायु का पौधा है और जंगली अवस्था में प्राकृतिक रूप में उगता है। पौधे में विशिष्ट गन्ध होती है। इसमें क्लियोमाइन और विस्कोसिन अल्कलॉइड पाये जाते हैं। (In this, Cleoamine and Viscosine Alkaloid are found.) पत्तियाँ खाने योग्य व पौष्टिक होती हैं। इनका स्वाद कड़वा होता है, इसलिये अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर आहार में शामिल की जा सकती हैं। जुकाम में पत्तियों की भाप लेने से लाभ होता है। खाँसी-जुकाम में पत्तियों का काढ़ा बनाकर लिया जाता है। घाव और विषैले कीट के काटने पर पत्तियाँ पीसकर लगाई जाती हैं। बवासीर रोग में पाइल्स को इसके बीजों के काढ़े से धोने पर उनकी सूजन खत्म हो जाती है। इसकी सब्जी गर्भवती महिलाओं के लिये एक पौष्टिक आहार है।
 
हुलहुल के नाम (Hulhul’s Names):
पर्यायवाची (Synonyms): Polanisia Viscosa, हुरहुर, कुत्ता सरसों, जंगली सरसों, अर्क कान्ता, अजगंधा, कनफटिया, (लेटिन-क्लीओम विस्कोसा-Cleome Viscosa)।
(Hul-Hul, Hula-Hula, Cleome Viscosa, Dog Mustard, Yellow Spider Flower, Tickweed)
Botanical Name: क्लीओम विस्कोसा/Cleome Viscosa/CLEOME VISCOSA L
Family: Cleomaceae (Spider Flower Family)
 
हुलहुल का संकलन (Collection of Hul-Hul):
चौमासा अर्थात बरसात शुरू होते ही हुलहुल के पौधे अपने आप उगना शुरू हो जाते हैं। सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के पहले-दूसरे सप्ताह के दौरान अर्थात बरसात के मौसम की समाप्ति के बाद जैसे ही धूप निकलना शूरू हो तो हुलहुल के पौधे को जड़ सहित उखाड़ कर और छाया शुष्क करके इसका पंचांग बनाया जा सकता है। इसी प्रकार से हरे पत्ते और पकने पर फलियों को सुखाकर बीज संग्रहित किये जा सकते हैं। संग्रहित औषधि तत्वों को ठीक से सुखाकर धूप में सुखाये हवाबंद डब्बों और, या प्लास्टिक की थैलियों में पैक करके सुरक्षित किया जा सकता है।
 
हुलहुल का स्वभाव एवं गुण (Nature and Properties of Hul-Hul):
स्वभाव सामान्यत: गर्म। स्वाद कड़वा, तीखा और ठंडा। पित्तकारक, लेकिन कफ तथा वात नाशक। वीर्य वर्धक। पेचिश नाशक। सभी प्रकार के चर्म रोगों में अत्यंत उपयोगी।
 
ऑर्गेनिक औषधि अधिक प्रभावी (Organic Herb More Effective):
भारत सरकार की कृषि नीति किसानों के हित में नहीं होने के कारण किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। जो किसानों की दुर्दशा का मूल कारण रहा है। इस कारण किसी भी तरीके से किसान अधिकतम उपज चाहता है। इसी वजह से किसानों द्वारा उपज बढाने के लिये अस्वास्थ्यकर रासायनिक उर्वरकों/खादों एवं कीटनाशकों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। (Therefore, more and more unhealthy chemical fertilizers and pesticides are used to increase yield by farmers) जिसके कारण फसल के साथ-साथ खेतों में उगने वाली वनौषधियां (Herbal Remedies) भी अप्रभावी या विषैली/विषाक्त) (Ineffective or Toxic) हो जाती हैं। जिनका औषधीय प्रयोग (Medicinal Use) करने से वांछित उपचारात्मक परिणाम (Desired Remedial Results) नहीं मिल पाते हैं। अत: उपज कम और लागत अधिक होने के बावजूद रोगियों के इलाज हेतु जैविक/ऑर्गेनिक/कार्बनिक पद्धति से उत्पादित (Produced by Organic Method) वनौषधियों का ही उपयोग किया जाना चाहिये। लेकिन ऑर्गेनिक वनौषधियों का बाजार में मिलना मुश्किल ही नहीं, असंभव सा होता जा रहा है। इसी वजह से हमारे द्वारा कुछ वर्षों से कुछ महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों का छोटे स्तर पर ऑर्गेनिक पद्धति से उत्पादन और, या संग्रहण किया जाना शुरू किया गया है। इसी क्रम में ऑर्गेनिक हुलहुल भी हमारे यहां उपलब्ध है। जिसे जरूरतमंद लोगों को निजी उपयोग हेतु अल्प मात्रा में घर बैठे डाक के जरिये रजिस्टर्ड पार्सल से भी पाउडर के रूप में उपलब्ध करवाया जा रहा है। लेकिन व्यापारियों के लिये बड़ी मात्रा में इसकी आपूर्ति करना अभी संभव नहीं है।
 
हुलहुल के आयुर्वेदिक उपयोग (Ayurvedic use of Hul-Hul):
खरपतवार (Weed) के रूप में खेतों, मेड़ों और खुली जगह पर या जंगली क्षेत्रों में अपने आप पैदा होने वाला यह एक जंगली पौधा/जड़ी बूटी है। जो आमतौर पर तीन प्रकार का देखा/पाया जाता है, लेकिन ग्रंथकारों ने इसे दो प्रकार का ही उल्लेख किया है। जिसे पीले फूल और सफेद फूल वाली हुलहुल के नाम से जाना/पहचाना जाता है। मेरे अनुभव में पीले फूल वाली हुलहुल में ही दो प्रजातियां होती हैं। जिनमें पत्तों के आकारों और डंठल के रंग में अंतर होता है। वर्तमान में हुलहुल जैसे उपयोगी औषधीय पौधों को संरक्षित करना अपने आप में चुनौती बनता जा रहा है, क्योंकि किसानों द्वारा खेती में खरपतवार नाशक दवाइयों के अंधाधुंध उपयोग के कारण यह महत्वपूर्ण तथा ऐसी ही अन्य अनेक उपयोगी जंगली बनौषधियां लगातार नष्ट/समाप्त होती जा रही है। छोटे से प्रयास के रूप में हमने जयपुर स्थित हमारे निरोगधाम में/के आपपास के जंगलों से तीनों प्रकार की शुद्ध ऑर्गेनिक हुलहुल को संरक्षित, संग्रहित करके उपयोग में लाया जा रहा हैं। यहां संक्षेप में हुरहुर की जनोपयोगी जानकारी प्रस्तुत है।
 
हुलहुल के औषधीय उपयोग (Medicinal uses of Hul-Hul):
 
1. बवासीर (पाइल्स-Piles-Hemorrhoids): इसके पत्तों को पीसकर पुल्टिस बना लें और गुदा द्वार अर्थात बवासीर पर चिपकाकर लंगोल बांध कर रखें। 4 से 7 दिन में बवासीर के बाहरी मस्से झड़कर ठीक हो जायेंगे। बीजों का पाउडर 2-2 ग्राम मिश्री/चीनी मिलाकर प्रात: और सायं सेवन किया जाता है। ये अर्श रोग को मिटा देता हैं।
 
2. पीलिया (Jaundice): हुलहुल के बीजों का पाउडर, कट करंज, जिसमें कांटे होते हैं (निरोगधाम पर कट करंज के कुछ पौधे हमने तैयार किये हैं।) के पत्तों के रस के साथ दिन में दो बार सेवन करवाने से कुछ ही दिनों में पीलिया ठीक हो जाता है।
 
3. बहुमूत्रता यानी मधुमेह (Diabetes): हुलहुल के बीजों का पाउडर बनाकर गुड़ में गोलियां बना लें और कुछ माह तक सुबह-सायं सेवन करने पर मधुमेह की तकलीफ ठीक हो जाती है।
 
4. आसान प्रसव (Easy Delivery): जड़ को धागे में बांधकर गर्भिणी के हाथ, सिर, कान या कमर में बांधने से प्रसव आसानी से हो जाता है, लेकिन याद रखकर प्रसव होने के तुरंत बाद इसे प्रसूता के शरीर से इसे हटा/खोल देना चाहिये। अन्यथा अनर्थ हो सकता है।
 
5. गिल्टी (Gland): सफेद फूल वाली हुलहुल के पत्तों का लेप गिल्टी पर लगाने से गिल्टी/गांठ पिघल सकती/जाती है।
 
6. चर्म रोग (Skin Diseases): अस्वास्थ्यकर घावों, नासूरों, त्वचा की बीमाारयों, खुजली, अल्सर, कुष्ठ रोग, चमड़ी फटकर बनने वाले ब्रणों/अल्सरों पर पत्तियों को पीसकर उन पर लगाया जाता है। अनेक अनुभवी गुणीजनों और हमारे पूर्वजों (आदिवासियों) का कहना है कि हुलहुल का सम्पूर्ण पौधा घाव, अल्सर, सूजन और त्वचा संक्रमण में परम्परागत इलाज के रूप प्रयोग किया जाता रहा है। बीजों, जड़ों और पत्तियों के आसव/अर्क का उपयोग लाइलाज अल्सरों में जमा मैग्गोट नामक मुलायम लार्वा (Maggot Lymph) के क्लीनर/साफसफाई के रूप में उपयोग किया जाता है। घावों/फोड़ों में मवाद बनना रोकने के लिये इसकी पत्तियों को पानी में उबाल कर घावों/फोड़ों पर लगाया/धोया जाता है। यही वजह है कि अनेक क्षेत्रों के हम आदिवासियों के पूर्वजों द्वारा सदियों से हुलहुल के पौधे को कुचल या मसल कर शरीर के किसी भी बाहरी हिस्से पर होने वाले फफोलों/छालों के उद्भेदों, संक्रमणों, चमड़ी के रोगों को नियंत्रित करने के लिये सफलतापूर्वक लगाया/प्रयोग किया जाता रहा है। इसके उपयोग से कीटाणू मर जाते हैं और घाव ठीक हो जाते हैं।
 
7. उपदंश (सिफलिस-Syphilis): एक पुरानी बैक्टीरिया संवाहक बीमारी, जो मुख्य रूप से यौन सम्बन्धों के दौरान संक्रमण से सम्पर्क में आती है, लेकिन विकासशील भ्रूण को संक्रमण से भी हो सकती है। इस तकलीफ में हुलहुल की पत्तियों को पीसकर और पानी में घोलकर पीने से इस बीमारी में आराम मिलता है।
 
8. प्रमेह-सूजाक (Gonorrhea): प्रमेह या सूजाक में पुरुषों की लिंग/मूत्रमार्ग या स्त्रियों की योनि/मूत्रमार्ग में सूजन होने के साथ-साथ पनीले, पीले या सफेद द्रव्य का स्राव होता रहता है। इस तकलीफ में हुलहुल का सेवन जहां एक ओर प्रमेह नाशक है, वहीं दूसरी ओर वीर्यवर्धक, शक्ति वर्धक एवं स्वास्थ्य रक्षक भी है। अत: इसके बीजों के पाउडर या पंचांग के पाउडर का सेवन किया जा सकता है।
 
9. ऐंठन एवं बांयटे (Cramps):
 
(1) बांयटे और ऐंठन का नुस्खा नम्बर-1: हाथ-पैरों में ऐंठन होने और बांयटे आने पर पर हुलहुल के 50 से 70 ग्राम ताजा पत्तों को पीसकर या 5 से 10 ग्राम शुद्ध पाउडर को कुछ दिनों तक पानी में मिलाकर पीने से हाथ-पैरों में ऐंठन वाला दर्द ठीक हो जाता है तथा बांयटे आने की दर्दनाक पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है।
 
(2) बांयटे और ऐंठन का नुस्खा नम्बर-2: हाथ-पैरों में ऐंठन या बांयटे आने पर 5 मिलीलीटर तारपीन का तेल और 20 ग्राम कपूर को काच की एक साथ शीशी में भरकर और डाट (कार्क) या ढक्कन लगाकर 3-4 घंटे तक कड़क धूप में रख दें। जिसे बीच-बीच में हिलाते रहें। दवाई तैयार है। इसमें से सुबह-शाम हाथ-पैरों पर मालिश करने से ऐंठन या बांयटे की तकलीफ में आराम मिलता है।
 
(3) बांयटे और ऐंठन का नुस्खा नम्बर-3: माजूफल, छोटी हरड़, कपूर और आंवला प्रत्येक को 10-10 ग्राम लेकर, इसमें आधा 5 तोला केसर मिलाकर सभी को बारीक करके, गुलाब जल में घोंट पीस कर मूंग के दाने के आकार की गोलियां बनाकर और छाया में सुखाकर रख सुरक्षित लें। रात के भोजन के बाद इसे छाछ के साथ सेवन करें।
 
(4) बांयटे और ऐंठन का होम्योपैथिक उपचार: होम्योपैथी में बिना लक्षणों के मिलान के किसी दवाई का अंदाजे उपयोग करना सही नहीं है। अत: रोगी के लक्षणानुसार आर्सेनिक एल्बम, कल्कैरिया कार्बोनिकम, कॉस्टिकम, सिंकौना, क्यूप्रम मैटालिकम, लाइकोपोडिमय, मैग्नेशिया फॉसफारिकम, रस टॉक्सिकोडेंड्रोन, सिलिसिया, सल्फर, पल्साटिल्ला इत्यादि दवाइयों में से किसी एक या एकाधिक का चयन कर उचित शक्ति में, निर्धारित मात्रा में सेवन करवाने से बांयटे और ऐंठन की तकलीफ से मुक्ति मिल जाती है।
 
10. कान दर्द (Earache/Ear Pain):
(1) सफेद फूल वाली हुलहुल की पत्तियों का रस कान दर्द से छुटकारा पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है।
(2) इसके रस में सेंधा नमक, शहद और कड़वा तेल मिलाकर कान में टपकाने से कर्णशुल मिटता है।
(3) इसके पत्तों का रस कान में टपकाने से कान का दर्द बंद हो जाता है।
(4) तिल का तेल एक भाग और हुलहुल का रस चार भाग मिलाकर हल्की आंच पर सिद्ध कर लेना चाहिए। कान को पिचकारी से धोकर इस तेल को टपकने से कान में पीप का बहना बंद हो जाता है और कुछ दिनों में बहरापन भी मिट जाता है।
(मेरा विषेश अनुभव याद रहे इसके रस में विशेष जलन होती है। अत: इसके रस को तेल या शहद में मिलाकर डालना चाहिये।)
 
11. कान से मवाद स्राव (Discharge of pus from Ear): बहरेपन अर्थात कम सुनाई देने की तकलीफ होने पर या कान से निकलने वाले पीबयुक्त/मवाद स्राव की तकलीफ से परेशान होने पर आस्ट्रेलियन आदिवासियों द्वारा इसके रस को तेल में उबालकर सदियों से कान में डाला जाता रहा है। मेरा अनुभव है कि पीले फूल वाली हुलहुल के पत्तों के रस को तेल में मिलाकर पकाकर तेल सिद्ध कर लें। इस तेल को कुछ दिन तक कान में डालने से कान का संक्रमण यानी कान से मवाद आना ठीक होकर घाव भर जाता है। इसके साथ-साथ मैं रोगी की स्थिति के अनुसार होम्योपैथी की स्टेफिसेग्रिया तथा सिलिसिया (Staphysagria and Silicea) नामक दवाईयां भी उचित शक्ति में सेवन करवाता हूं और असाध्य समझे जाने वाले घाव भी भर जाते हैं।
 
12. पेट दर्द एवं आंतों के कीड़े (Stomach Pain And Intestinal Worms): पेट की शिकायतों में हुलहुल के बीज का काढ़ा इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज आंतों के कीड़ों को मार देते हैं और वायुनाशक भी हैं। अफ्रीका एवं अमेरिका में हुलहुल को कृमिनाशक (पेट के कीड़े को दुर करने की दवा) के रूप में प्रयोग किया जाता है। हुलहुल के बीज का ताजा पाउडर वयस्कोंं को 2000 से 4000 मिलीग्राम तथा अवयस्कों या बच्चों को 300 मिलीग्राम से 1300 मिलीग्राम तक सोते समय पानी के साथ पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। पेट दर्द का निदान होता है और पेट की अनेक तकलीफों में आराम मिलता है। इसके बीजों के चूर्ण में शक्कर मिलाकर खिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं।
 
13. कब्ज (Constipation): इसका काढा कब्ज का असरकारी इलाज है। जिसे हम आदिवासियों के पूर्वजों द्वारा वर्षों से उपयोग किया जाता रहा है।
 
14. पेचिश (Dysentery): पेट में मरोड़ के साथ दर्द होना और मरोड़/ऐंठन के साथ पेचिश/दस्त आना। जिसमें आंव एवं रक्त का मिश्रण हो, तो कुछ दिन तक हुलहुल के पत्तों का काढा पीने जल्दी आराम मिल जाता है।
 
15. पाचक एवं भूख वर्धक (Digestive and Appetizer): हुलहुल के पंचांग का काढा रेचक/दस्तावर होने के साथ-साथ भूख को बढ़ाने और पाचन शक्ति को मजबूत करने में भी सहायक है।
 
16. सिरदर्द (Headache): सिरदर्द की तकलीफ से परेशान लोगों द्वारा इसके पत्तों का पुल्टिस/लेप इस्तेमाल किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी सिरदर्द के उपचार के लिए इसकी पत्तियों का उपयोग करते हैं।
 
17. आधासीसी अर्थात अर्द्ध सिर शूल (Semi-Head Stroke or Migraine): हुलहुल के पत्तों के स्वरस में, हुलहुल के ही बीजों को पीसकर लेप बना लें और ललाट पर तथा दर्दवाली जगह पर 4-5 दिन तक लेप करने से आधासीसी यानी माईग्रेन के दर्द से मुक्ति मिल जाती है। मैं अपने पेशेंट्स को इसके साथ-साथ माईग्रेन के दर्द के स्थान की स्थिति और लक्षणों के अनुसार होम्योपैथी की दवाई सैंग्यूनेरिया, स्पाईजैलिया, नैट्रम म्यूर, बैलाडौना, ग्लोनाइन, काली फॉस आदि का भी उचित शक्ति में उपयोग करवाता रहा हूं।
 
18. दांत (Teeth): विटामिन सी की कमी के कारण दांतों में एक बीमारी होती है, जिसमें दांतों के मसूढों में सूजन और रक्तस्राव होता है। हुलहुल की जड़ों का उपयोग स्कर्वी रोधक/मसूड़ों से रक्तस्राव एवं सूजन रोधक सिद्ध हुआ है एवं यह इन तकलीफों के उपचार में सहायक/प्रोत्साहक के रूप में उपयुक्त पाया गया है।
 
19. दांत दर्द नाशक (Toothache Killer): पीड़ाग्रस्त या कीड़ा ग्रस्त दांत या दाढ़ (Worm-infected teeth) हुलहुल के पत्तों का रस भर देने से कीड़ा मर जाता है और दर्द से मुक्ति मिल जाती है।
 
20. हृदय (Heart): श्रीलंका सहित अनेक देशों में हुलुहुल की जड़ों और बीजों का, हृदय को मजबूती प्रदान करने वाले प्रोत्साहक/उत्तेजक दवाई के रूप में उपयोग किया जाता रहा है। पीले हुरहुर वाली के पत्तों को पीसकर हृदय के स्थान पर लेप करने से आराम मिलता हैं।
 
21. ठंड, बुखार एवं दस्त (Cold, Fever and Diarrhea): ठंड लगकर आने वाले बुखार, मलेरिया और बुखार के साथ दस्त की तकलीफ के उपचार लिए भी हुलहुल के बीजों का उपयोग किया जा सकता है।
 
22. शीत ज्वर (Cold Fever): सर्दी लगकर जो बुखार यानी ज्वर आता है। उसमें बुखार आने के समय से पहले हुलहुल और मकोय के पत्तों का रस मिलाकर मालिक करने से बुखार नहीं आता है और शीत ज्वर से मुक्ति मिल जाती है। or हुलहुल के पत्तों और कालीमिर्च को बराबर लेकर पीसकर काली मिर्च के बराबर गोलियां बना लेनी चाहिए। इन गोलियों में से एक-एक गोली 3 दिन तक खाने से शीत बुखार छूट जाता है।
 
23. शिशु विकार (Infants Disorders): शिशुओं की पसली चलने के साथ में होने वाली बेहोशी और ऐंठन में हुलहुल के बीजों का उपयोग किया जाता है।
 
24. मूत्रवर्धक (Diuretic): हुलहुल मूत्रवर्धक है। अत: जिनको मूत्र त्याग में समस्या हो उनके लिये, इसका उपयोग उपयोगी है।
 
25. दमा (Asthma): दमा से पीड़ित रोगियों के उपचार के लिये हुलहुल के पत्तों के रस का उपयोग किया जाता है। श्वास नलिका के रोग (Respiratory Diseases): इसके पत्तों का रस पिलाने से श्वास नलिका के रोग मिटते हैं। इसमे पीले फूलों वाली हुरहुर के पत्तों को पीसकर इसका लेप करने से फेफड़ों में जलन शांत होती हैं।
 
26. मोतीझरा/टाइफाइड (Motijhara/Typhoid): हुलहुल के पत्तों का काढ़ा 60gm की मात्रा में दिन में दो बार पिलाने से मोतीझरा या टाइफाइड बुखार तुरंत उतर जाता है।
 
 
सार (Abstract): संक्षेप में कहा जाये तो नवीनतम शोधों के अनुसार हुलहुल के पौधे में मलेरिया बुखार, सिर दर्द, ओटिटिस मीडिया-[Otitis Media-मध्यकर्णशोथ], आंखों के घावों, अल्सर, स्कर्वी, संधिशोथ, त्वचा रोग, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग [Gastrointestinal (जठरांत्र-Relating to the stomach and the intestines-पेट और आंतों से संबंधित], डिस्प्सीसिया [Dyspepsia-Indigestion-अपच, अजीर्ण, बदहजमी], ब्रोंकाइटिस [Bronchitis-श्वास नली का प्रदाह, श्वसनीशोध], जिगर की बीमारियों, गर्भाशय की शिकायतों और शिशुओं की आंतों के इलाज में उपयोगी माना जाता है।
 
वयस्कों के लिये हुलहुल की दवाई के रूप में उपयोग की जाने वाली मात्रा:
पत्ते: 2 ग्राम-पाचन क्रिया को सुधारते है।
बीज: 2 ग्राम-आँतों के कीड़े नष्ट करते है।
पत्तों का रस: 2 ग्राम-दमा मिटता है।
जड़: कान में बाँधने से भूत-प्रेत का प्रकोप नहीं होता।
 
उम्मीद करता हूं कि उपरोक्त जानकारी आपको उपयोगी लगी होगी। इसे और अधिक उपयोगी बनाने के लिये विषय विशेषज्ञों तथा अनुभवी लोगों के सुझावों का हृदय से स्वागत है। अपने वाट्सएप पर नियमित रूप से हेल्थ बुलेटिन प्राप्ति हेतु 9875066111 पर अपना नाम-पता लिखकर वाट्सएप करें, लेकिन स्वास्थ्य परामर्श/उपचार हेतु 8561955619 पर वाट्सएप करें।
 
वैधानिक चेतावनी (Legal Warning): यहां प्रस्तुत विवरण केवल जनहित में औषधियों/दवाइयों, मानव स्वास्थ्य और बीमारियों के बारे में जागरूकता बढाने के लिए ही लिखा गया है। पाठक स्वयं अपना इलाज करने का खतरा मोल नहीं लें। कृपया अपने चिकित्सक के परामर्श के बिना, सुझाई गयी (किसी भी प्रकार की) दवा का सेवन नहीं करें। [Please Do not take any (kind of) suggested medicine, without consulting your Doctor.]
 
लेखन दिनांक: 17.09.2018 संपादन दिनांक: 24.10.2018, 28.07.2019 एवं 05.09.2021.
 

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