आत्ममुग्धता (Narcissism): विचित्र मानसिक बीमारी जो सामाजिक समस्याओं को जन्म देती है!

 
आत्ममुग्धता (Narcissism): विचित्र मानसिक बीमारी
जो सामाजिक समस्याओं को जन्म देती है!
 
हमारे आसपास में कुछ लोग जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष कल्पनालोक में सपने देखते हुए गुजार देते हैं। ऐसे लोग सोचते हैं कि वे जैसी कल्पनाएं करते हैं (जिन्हें वे अकसर योजनाओं का नाम देते हैं), साथ ही दावा करते हैं उनकी वे सभी योजनाएं 100% सफल होंगी। वे 99% की तो बात ही नहीं करते। उन्हें दृढ विश्वास (जिसे अति आत्मविश्वास कहना ठीक होगा) होता है कि उनका जीवन यानी भविष्य सारी दुनिया या कम से कम उनके आसपास के लोगों से तो निश्वय ही श्रृेष्ठ होगा। यदि कोई एक भी इनके इन काल्पनिक विचारों को समर्थन देने वाला मिल जाये तो, वे सातवें आसमान पर उड़ने लगते हैं। इन लोगों को अपने स्वार्थी दोस्तों के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता है। मगर वे अपने दोस्तों को स्वार्थी मानने को तैयार नहीं होते।
 

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आत्ममुग्धता (Narcissism) से ग्रस्त होने की एक मात्र तो नहीं, लेकिन इसकी एक बड़ी वजह यह हो सकती है कि बचपन में जिन बच्चों की उपेक्षा या अनदेखी की जाती है या इसके ठीक विपरीत, जिनका जरूरत से ज्यादा ख्याल रखा जाता है। ऐसे बच्चों के आत्ममुग्धता से ग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आत्ममुग्ध लोग “दंभ भरा रवैया रखते हैं, ख़ुद को दूसरों से बेहतर समझते हैं, ज़रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास से भरे होते हैं, दूसरों का दु:ख-दर्द कम समझते (कम महसूस करते) हैं और उनमें कम शर्म तथा कम पछतावा होता है।” मनोवैज्ञानिक आत्ममुग्धता को इंसानों का ‘स्याह पहलू (Dark Aspect)’ मानते हैं। ये कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसी ‘साइकोपैथी (Psychopathy)’ (एक तरह का पर्सनैलिटी डिसऑर्डर) और ‘सैडिज्म (Sadism) परपीड़ा-आसक्ति’ (दूसरों के दु:ख में खुशी होने की आदत)। यद्यपि मैं इस सैडिज्म वाले तथ्य से अधिक सहमत नहीं हूं।
 

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बीबीसी द्वारा समय-समय पर प्रकाशित शोधों के तथ्यों से यह भी प्रमाणित हुआ है कि ‘आत्ममुग्ध लोग अक्सर दूसरों के रचनात्मक विचारों और सहयोगी व्यवहार को भी अपने विरुद्ध मानते हैं।’ ऐसे लोग कई बार असुरक्षा की भावना (Feeling of Insecurity) से भी घिरे होते हैं। लेकिन यदि किसी योग्य काउंसलर की सलाह से वे आत्ममुग्धता के नकारात्मक पहलु से मुक्त हो जायें तो किसी भी क्षेत्र या निजी जिन्दगी में, वे दूसरों की तुलना में अधिक तथा तेजी से कामयाब हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि आत्ममुग्ध लोगों में एक किस्म की ‘मानसिक मजबूती (Mental Strength)’ भी होती है। जिसकी वजह से वे निराशा से जल्दी उबर पाने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोगों के बारे में कुछ अनुभवजन्य तथ्य, जो यद्यपि सभी आत्ममुग्ध लोगों में समान रूप से नहीं पाये जाते, लेकिन कमोबेश सभी में पाये जा सकते हैं:-
 
1. अपवादों को छोड़ दिया जाये तो ऐसे लोगों का जीवन, विषाद, पश्चाताप, चिंता, तनाव, मायूसी, अभाव और अनेकों बीमारियों से भरा हुआ होता है, क्योंकि उन्हें खुद को कल्पनाओं में निहारने या खुद की कल्पना के अनुसार स्वप्न देखने और उन्हें पूरा करने से अधिक कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।
 
2. इस कारण समय पर जागने, नहाने, अच्छा दिखने या अच्छे कपड़े पहनने तक की उन्हें कोई परवाह नहीं रहती। उनकी दिनचर्या (Daily Routine) सुनिश्चित नहीं होती। आखिरकार, वे सूख कर कंकाल हो जाते हैं। अनेक बार ऐसे लोग सबसे अलग यूनिक और एक्सक्लूसिव (Unique and Exclusive) दिखने की चाह से भी ग्रस्त रहते हैं। इस चाहत में हर एक्सक्लूसिव चीज उन्हें अपनी तरफ खींचती है और वे अपनी जेब पर ध्यान दिए बिना ही अनाप-शनाप खर्च करके अपने शौक पूरे करते देखे जा सकते हैं, क्योंकि उन्हें लोगों के आकर्षण का केंद्र बनना या विशिष्ट दिखना होता है। इस प्रक्रिया में वे खुद तो तनाव ग्रस्त रहते ही हैं, साथ ही उनके स्वजन या आसपास रहने वाले भी उनसे परेशान रहने लगते हैं।
 
3. आत्ममुग्ध लोग खुद को बचाने या खुद के काल्पनिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे लोग विशेषकर तब जब उन्हें अपनी और अपनों की भावनाओं में से किसी एक का चुनाव करना हो तो वे निश्चित रूप से किसी और की भावनाओं की तनिक भी कद्र नहीं करते या बहुत कम परवाह करते हैं। हालांकि कहते यही रहते हैं कि उन्हें दूसरों की बहुत ज्यादा परवाह है। ऐसे लोग अपने लिए दूसरों का फायदा उठाने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं। इस कारण उन पर स्वार्थी होने का ठप्पा भी लग जाता है। उनके व्यक्तित्व का यही हिस्सा उनके लिये प्यार और दोस्ती में रुकावट भी बन सकता है। जिससे वे आहत होते रहते हैं, लेकिन आत्मालोचन करने के बजाय दूसरों को दोषी ठहराते रहते हैं।
 

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4. ऐसे लोगों की मनोस्थिति कुछ भी शारीरिक श्रम करने की नहीं रह पाती। यहां तक कि उनके जीवन में एक ऐसा समय भी आता है, जबकि उन्हें यौन सम्बन्धों में ऊर्जा खर्च करना भी, श्रमसाध्य कार्य लगता है। इस कारण यदि इनका समय पर विवाह नहीं हो तो विवाह करने से भी कतराने लगते हैं। विवाह हो जाने में पर इनमें से कुछ आश्चर्यजनक रूप से बदल जाते हैं!
 
5. एकाकीपन के कारण, लगातार एक के बाद एक असफलताओं और आर्थिक अभावों के कारण इतने निराश तथा कमजोर हो जाते हैं कि इनमें से अधिकांश में आत्मघाती प्रवृति जन्म लेने लगती है। ऐसे लोग खुद भी मानते हैं कि अगर वो अपनों के प्रति संवेदनशील बन जायें और अपने आप को किसी आशंका या भय से संचालित होने दें, तो वे आत्मघाती प्रवृत्तियों की तरफ तेजी से बढ सकते हैं। वे विचित्र उधेड़बुन के शिकार रहते हैं। इनमें से कुछ आत्मघात कर लेते हैं। अन्यथा ऐसे लोगों के जीवन के अंतिम वर्ष पछतावा, दु:ख, अपमान, उपहास, अनेकों बीमारियों और मानसिक तथा शारीरिक पीड़ा से भरे हुए होते हैं।
 
6. सबसे दु:खद पहलु तो यह है कि उनका कोई शुभचिंतक, उनको कुछ समझाना चाहे तो वे लोग अपने आप को भीड़ से अलग विशिष्ठ, सर्वश्रृेष्ठ और अपवाद कहने और सिद्ध करने लग जात हैं और अपने काल्पनिक दिवास्वप्नों के विरुद्ध एक शब्द भी सुनना पसंद नहीं करते!
 
7. किसी शराबी की भांति इन्हें काल्पनिक दिवास्वप्नों में विचरण करते रहने की लत पड़ जाती है। जिससे उन्हें आत्मरति यानी आत्मनिर्भरता (Self-reliance) की सुखानुभूति (Pleasure) होती है।
 
8. सामान्यत: अन्य सभी मामलों में ऐसे लोग, आम नागरिकों जैसे ही सौम्य और सरल होते हैं, लेकिन ऐसे लोग इतने लापरवाह या मूर्ख भी होते हैं कि काल्पनिक दिवास्वप्नों की सुखानुभूति (Pleasure) में इस कदर खोये रहते हैं कि उन्हें खुद के अमूल्य जीवन के बहुमूल्य वर्षों की निरर्थक बर्बादी तक का अहसास नहीं हो पाता है।
 
9. ऐसे लोग अपने आप के जीवन को बार-बार दाव पर लगाते रहते हैं। इस तरह के व्यक्ति को अपने से अधिक कुशल, चतुर, बुद्धिमान, श्रेष्ठ और ज्ञानी कोई अन्य नज़र नहीं आता। हर व्यक्ति, वस्तु और विचार की बुराई करना और उसे नकारना इनकी प्रवृत्ति हो जाती है।
 
10. परिवार के कुछ लोग उन्हें स्वार्थी भी बोलते हैं, जो पूरी तरह से गलत नहीं होते, क्योंकि ऐसे लोग अपने कभी न पूर्ण हो सकने वाले दिवास्वप्नों के कल्पनालोक में विचरण करते समय, अपने परिवारजनों की आकांक्षाओं और उम्मीद की लेशमात्र, यानी तनिक भी परवाह नहीं करते।
 
11. सच तो यह है कि उन्हें कभी न पूर्ण हो सकने वाली अपनी कल्पनाओं के स्वप्नलोक से बाहर निकलकर सोचने और समझने की फुर्सत ही नहीं मिलती या जरूरत ही महसूस नहीं होती। यही वजह है कि स्वजनों या सम्बन्धियों के बहुत अच्छे विचारों का उन पर तनिक भी असर नहीं होता, बल्कि अनेक बार ऐसे लोग समझाइश देने वालों को अपना दुश्मन समझ बैठते हैं और उनसे दूरी बना लेते हैं।
 
12. ऐसा इसलिये होता है, क्योंकि जो लोग अपनी बेसिरपैर की कल्पनाओं पर आधारित दिवास्वप्नों की सुखानुभूति में अपने खुद के जीवन के अमूल्य वर्षों और अपनी जवानी तक को, भेंट चढा सकते हैं या चढा चुके होतं हैं, उन्हें इस बात की फुर्सत ही कहां होती है कि वे इस ओर ध्यान दे सके कि उनके ऐसे मूर्खतापूर्ण या जिद्दी व्यवहार के कारण उनके स्वजनों को किस प्रकार की असहनीय वेदनाओं तथा तनावों से गुजरना पड़ रहा होता है?
 
13. सच तो यह है कि ऐसे लोगों को आत्ममुग्धता (Narcissism) की मानसिक बीमारी होती है। जिसे वे अपनी विलक्षण प्रतिभा समझ बैठते हैं। जिसके कारण उन्हें दूसरे लोग बेवकूफ या नासमझ या कमतर लगने लगते हैं। इसे मनोविज्ञान की भाषा में NPD याने नार्सीसिस्ट/नार्सिसिज्म पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (Narcissist/Narcissism Personality Disorder) कहा जाता है।
 
14. तथ्यात्मक दृष्टि से आत्ममुग्धता व्यक्ति विशेष का मनोविकार है, लेकिन इसके दुष्परिणाम सम्पूर्ण परिवार और अंतत: समाज को भुगतने होते हैं। अत: आत्ममुग्धता मनोविकार के साथ-साथ सामाजिक बीमारी भी है। आत्ममुग्धता यानी NPD से ग्रसित लोग अपनी क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ा कर बताने, ईर्ष्या, द्वेष और बनावट का सहारा लेकर अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश में अनेक बार हास्यास्पद हो जाते हैं। एक सर्वे के अनुसार तमाम तरह के अपराधों के पीछे विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक कारण पाए जाते हैं, जिनमें से NPD भी एक बड़ा कारण है। अपनी आत्ममुग्धता को दूसरों की नजर में सम्मान न मिलते देख इस तरह के व्यक्ति अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं और धीरे-धीरे इनमें आपराधिक तथा आत्मघातिक प्रवृत्तियां जन्म लेने लगती है।
 
15. दिवास्वप्नों के कल्पनालोक में विचरण करने वाले, आत्ममुग्धता से ग्रसित इन लोगों को किसी ऐसे काउंसलर की जरूरत (तलाश भी) होती है, जिस पर वे 100% विश्वास कर सकें। क्योंकि वे हमेशा शंका करते करते रहते हैं कि उनका काउंसलर अंदर ही अंदर उनके परिवाजनों से मिला हुआ तो नहीं है। जरा सा भी संदेह होने पर उन्हें लगने लगता है कि काउंसलर भी परिवाजनों के इशारे पर समझाइश के नाम पर, उन्हें अपने लक्ष्य से भटका रहा है।
 
अंतिम निष्कर्ष: बेशक ऐसे लोग परिवारनों के लिये कभी न ठीक हो सकने वाले फोड़े की तरह लगातार दर्द देते रहते हैं और खुद भी अनेकों प्रकार का दर्द सहते रहते हैं, लेकिन फिर भी जैसे पीड़ित व्यक्ति कभी ठीक न होने वाले फोड़े का पूरा-पूरा ध्यान रखता है। ठीक उसी प्रकार से ऐसे लोगों से लड़ने-झगड़ने के बजाय, जैसे फोड़े की विशेष देखभाल की जाती है, उसी भांति, ऐसे लोगों के स्वस्थ होने तक यानी कल्पनालोक से बाहर निकलने तक, उनकी भावनाओं की सजगता एवं सतर्कता पूर्वक अतिरिक्त तथा विशेष परवाह करने की जरूरत होती है। यद्यपि ऐसे आत्मुग्धता से पीड़ित लोग इसके बदले में परिजनों को धन्यवाद तक नहीं बोलते हैं। बल्कि इसके विपरीत अतिरिक्त देखभाल से यह खतरा भी बना रहता है कि इस अतिरिक्त देखभाल को ऐसे लोग अपना अधिकार समझ बैठते हैं। इस विषय को अंतिम रूप देने से पहले यह लिखना भी जरूरी समझता हूं कि एक सुशिक्षित नार्सिसिस्ट अपने कार्यस्थल पर दूसरे लोगों में जोश भर देने में सक्षम हो सकता है। उनके आत्मलीन रहने की भावना और दूसरों को अपना महत्व मनवाने की आवश्यकता प्रेरणादायी बल की तरह काम करती है, जो उन्हें किसी और के मुकाबले कड़ी मेहनत और बेहतर काम करने के लिए प्रोत्साहित करती है। उनका आकर्षण, बात करने का कौशल और जोखिम लेने की उनकी प्रवृत्ति, उन्हें संपूर्ण लीडर बनाती है! शोधों के मुताबिक, कुछ नियोक्ता (काम देने वाले) लोग लीडर की भूमिका के लिए किसी नार्सिसिस्ट शख्स की ही तलाश करते हैं।
 
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, संचालक निरोगधाम, जयपुर। पराम्परागत उपचारक एवं काउंसलर, हेल्थकेयर वाट्सएप: 8561955619 बात केवल 10 से 18 बजे के मध्य। लेखन दिनांक: 15.01.20, संपादन: 29.01.2020

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