थायरॉयड Thyroid की समस्या से बचाव हेतु जागरूकता बहुत जरूरी

 
 
थायरॉयड Thyroid की समस्या से बचाव हेतु जागरूकता बहुत जरूरी
 
(इण्डियन थायरॉइड सोसायटी (Indian Thyroid Society) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर 10वां व्यक्त‍ि थायरॉइड का शिकार है।)
 
भारत में थायरॉयड/थाइरॉइड के पेशेंट बहुत तेजी से बढ रहे हैं। अत: थायरॉयड की समस्या को नजर अंदाज करना स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा हो सकता है। हमारे देश में तकरीबन 10 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में थायरॉइड की तकलीफ से पीड़ित हैं। प्रगति और उन्नति के साथ लोगों की जीवनशैली में तेजी से हो रहे बदलाव के कारण विशेषकर शहरी लोगों में थायरॉइड आम हो चुकी है। थायरॉइड के कम या अधिक स्राव से शरीर के मेटाबोलिज्म (चयापचय-उपापचय-Metabolism=The chemical processes that occur within a living organism in order to maintain life) पर असर पड़ता है। थायरॉइड तितली के आकार की एक महत्वपूर्ण ग्रंथि (Gland) है, जो सांस की नली के पास स्थिति होती है। इसका प्रमुख कार्य शरीर के मेटाबॉलिज्म पर नियंत्रण बनाये रखना है।
 
नोट: इस लेख में दी गयी जानकारी, सलाह आदि का मकसद केवल जनहित में हेल्थ अवेयरनेस लाना है। यह जानकारी किसी भी तरह से और किसी भी रूप में योग्य चिकित्सक की राय का विकल्प नहीं हो सकती है। उपचार हेतु हमेशा किसी हेल्थ एक्सपर्ट या अपने उपचारक/चिकित्सक से ही परामर्श करें।
 
थायरॉइड से जुड़ी आम समस्याओं की बात करें तो इसमें थायरॉइड के पांच प्रकार के विकार होते हैं। इसमें हाइपोथायराइडिज्म (Hypothyroidism), हाइपरथायराइडिज्म (Hyperthyroidism), आयोडीन की कमी के कारण होने वाले विकार जैसे गॉयटर (Goiter)/गलगंड, हाशिमोटो थायराइडिटिस (Hashimoto Thyroiditis) और थायराइड कैंसर (Thyroid Cancer) शामिल हैं।
 
थायरॉइड ग्रंथि (Thyroid Gland) से दो हॉर्मोन (Hormone) बनते हैं-
1. टी 3 (ट्राई आयडो थायरॉक्सिन-Tri Iodo Thyroxine) और
2. टी 4 (थायरॉक्सिन)।
 
यह हार्मोन शरीर के तापमान, मेटाबोलिज्म और हार्ट रेट को नियंत्रित करते हैं। थायरॉइड ग्रंथि पर पीयूष/पिट्यूटरी ग्लैंड (Pituitary Gland) का नियंत्रण होता है जो दिमाग में मौजूद होती है। इससे थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (Thyroid Stimulating Hormone-TSH) (टीएसएच) निकलता है। जब शरीर में इन हार्मोन का संतुलन गड़बड़ हो जाता है तो व्यक्ति थायरॉइड नामक विकृति का शिकार हो जाता है।
 
हाइपोथायराइडिज्म स्थिति में थायरॉइड हार्मोन का स्राव कम होता है, जिससे शरीर का मेटाबोलिज्म बिगड़ (धीमा हो) जाता है। इसके विपरीत हाइपरथायराइडिज्म तब होता है, जब थायराइड हार्मोन की मात्रा शरीर में ज्यादा बनती है, जिससे मेटाबॉलिज्म तेज हो जाता है। हाइपोथायराइडिज्म एक ऐसी समस्या है, जिसमें पेशेंट की थायरॉइड ग्रंथियां सामान्य से अधिक थायरॉक्सिन हार्मोन्स बनाने लगती हैं। जिसकी वजह से पेशेंट को अनेक तकलीफें होने लगती हैं। थायरॉइड हार्मोन बढने के कुछ शुरूआती संकेत इस प्रकार हैं:-
 
01. जल्दी जल्दी भूख लगना।
02. हर समय थकान महसूस होना।
03. अधिक भोजन करने पर भी वजन कम होना।
04. जल्दी नींद नहीं आना और देर रात तक जागना।
05. आंखों पर सोजन।
06. गर्मी अधिक लगना।
07. एकाग्रता में कमी।
08. दिल की धड़कन तेज होना।
09. मांसपेसियों में कमजोरी महसूस होना।
10. चिंतित या चिंताग्रस्त रहना।
11. अधिक पसीना आना।
12. सीने में दर्द और सांस लेने में परेशानी।
13. गले के सामने वाले हिस्से में थायरॉइड ग्रंथि का बढा हुआ दिखना।
14. थकान और डायरिया (Diarrhea-दस्त) होना।
15. बालों का झड़ना।
16. मासिक चक्र में गड़बड़ी होना।
17. मासिक चक्र 2 से 3 महीने तक नहीं आना। मात्रा में कम या ज्यादा आना।
18. गर्भधारण नहीं हो पाना या बांझपन।
 
आयोडीन थायरॉइड हार्मोन को बनाने के लिए जरूरी है, इसलिए इस मिनरल की कमी के कारण गॉयटर जैसे रोग हो जाते हैं। यही वजह है कि थायरॉइड पेशेंट को आयोडीन युक्त नमक खाने की सलाह दी जाती है। हाशिमोटो थायरॉइडिटिस तब होता है जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली थायराईड पर हमला कर देती है। थायरॉइड कैंसर पर्यावरणी कारकों व आनुवांशिक कारणों से होता है।
 
वर्तमान में थायरॉइड की विकृतियां/बीमारियां जीवनशैली के साथ जुड़ चुकी है। डायबिटीज (Diabetes), हाइपरटेंशन (Hypertension) और लिपिड डिसऑर्डर (Lipid Disorder) के साथ इनका सीधा संबंध पाया गया है। गलत आहार जैसे वसा युक्त खाद्य पदार्थ, ज्यादा कैलोरी आदि के सेवन, विटामिन और मिनरल्स की कमी से शरीर अपना काम ठीक से नहीं कर पाता। इससे वजन बढ़ना और मोटापा/ओबेसिटी जैसी समस्याएं भी बढ़ती हैं।
 
ऐसे कई विटामिन और मिनरल्स हैं जो थायरॉइड हार्मोन बनाने के लिए जरूरी हैं। अगर हम जरूरी पोषक पदार्थों से युक्त संतुलित आहार नहीं लेंगे तो थायरॉइड जैसी बीमारियों का सामना करना ही होगा। अच्छी सेहत के लिए व्यायाम पहली जरूरत है। लगातार बैठे रहना स्वास्थ्य के लिये जहर की तरह है, जो धीरे-धीरे शरीर को नष्ट करने लगता है। व्यायाम करने से शरीर का मेटाबोलिज्म सुधरता है। थायरॉइड ग्लैंड पर व्यायाम का सीधा और सकारात्मक असर पड़ता है।
 
थायरॉइड ग्रंथि पर शरीर के अन्य हॉर्मोन का भी असर पड़ता है। हॉर्मोन का स्तर असंतुलित होने से थायरॉइड पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हवा, पानी और भोज्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक तत्व भी थायरॉइड विकार का कारण हो सकते हैं। एक्स रे किरणों के कारण भी थायरॉइड कोशिकाओं में उत्परिवर्तन (Mutation) हो सकता है, जिससे कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में भोजन व पानी की गुणवत्ता व थायरॉइड की जांच के लिए अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
 
यदि थायरॉइड का समय पर इलाज नहीं करवाया जाये तो यह ताउम्र के लिये परेशानी बन सकती है। यदि गर्भवती स्त्रियों में थायरॉइड की शिकायत होती है और उसका समय रहते उपचार नहीं हो पाता है तो जन्म लेने वाले बच्चे के दिमाग का ठीक से विकास नहीं हो पाता है। ऐसा बच्चा ताउम्र मानसिक रूप से कमजोर रह सकता है। अत: गर्भ धारण करने वाली प्रत्येक महिला को गर्भ धारण करने से पहले थायरॉइड की जांच करवानी चाहिये। यदि थायरॉइड की तकलीफ पायी जाये तो थायरॉइड ठीक नहीं होने तक गर्भ धारण नहीं करना चाहिये। थायरॉइड का समय पर आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक उपचार नहीं लेने वाले मरीजों को जीवनभर थायरॉइड की ऐलोपैथक दवाइयां खानी पड़ती हैं।
 
इण्डियन थायरॉइड सोसायटी (Indian Thyroid Society) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर 10वां व्यक्त‍ि थायरॉइड का शिकार है। खासतौर से महिलाओं में थायरॉइड के मामले लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं। मगर हेल्थ के प्रति जागरूकता में कमी के कारण बड़ी आबादी को इस बारे में जानकारी ही नहीं है।
 
थायरॉइड पर शोध करने वालों का कहना है कि जागरुकता के अभाव में थायरॉइड की बीमारी तेजी से अपने पैर पसार रही है। सामान्यत: देखा गया है कि थायरॉइड की वजह से दमा यानी अस्थमा (Asthma), कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) की समस्या, डिप्रेशन (Depression), डायबिटीज (Diabetes), इंसोमेनिया (Insomnia) यानी उनिद्र रोग और दिल की बीमारियों (Heart Diseases) का खतरा बढ़ता जा रहा है।
 
थायरॉइड के विशेषज्ञ डॉक्टरों की मानें तो कुछ खास खाद्य पदार्थों को खाने से थायरॉइड बढ़ जाता है और थायरॉइड पेशेंट की सभी तकलीफें बढने लगती हैं। अत: हर आम-ओ-खास को यह जान लेना उचित होगा कि थायरॉइड से ग्रस्त रोगियों को किस-किस से परहेज करना चाहिए:-
 
1. आयोडीन युक्त भोजन (Iodine Meal): थायरॉइड ग्लैंड्स हमारे शरीर से आयोडीन ग्रहण करके थायरॉइड हार्मोन पैदा करते हैं, इसलिए जिनको हाइपोथायरॉइड (Hypothyroid) है, उन्हें आयोडीन की अधिकता वाली खाने-पीने की चीजों से जीवनभर दूरी बनाए रखनी चाहिये। जिनमें प्रमुख हैं-सी फ़ूड (समुद्री भोजन) (Seafood) अर्थात-मछली (Fish), झींगा, केकड़ा यानी क्रेब (Crab), ओएस्टर (Oyster), लॉबस्टर (lobster), स्क्विड (Squid), प्रॉन्स Prawns (प्रॉन्स) आदि और आयोडीन (Iodine) नमक को पूरी तरह नजरअंदाज करें।
 
2. कैफीन: कैफीन का सेवन सीधे तौर पर थायरॉइड को नहीं बढ़ाता है, लेकिन कैफीन का सेवन उन सभी परेशानियों को बढ़ा देता है, जो थायरॉइड की वजह से पैदा होती हैं। जैसे बेचैनी और नींद में खलल अर्थात नींद नहीं आना या रात्रि में नींद टूट जाना। कॉफी में कैफीन पाया जाता है। कॉफी का सेवन करने से थायरॉइड की थायरोक्सिन दवा का भी सही से असर नहीं हो पाता है।  
 
3. रेड मीट: रेड मीट यानी लाल मांस में कोलेस्ट्रॉल और सेचुरेडेट फैट (Cholesterol and Saturated Fat) बहुत होता है। इसके सेवन से तेजी से वजन बढ़ता है। थायरॉइड ग्रस्त व्यक्तियों का वजन तो वैसे ही अर्थात थायरॉइड की वजह से ही बहुत तेजी से बढ़ता है। अत: थायरॉइड ग्रस्त लोगों को रेड मीट का सेवन नहीं करना चाहिये। इसके बावजूद भी जो लोग रेड मीट का सेवन करते हैं, उन्हें जान लेना चाहिये कि रेड मीट खाने से थायरॉइड ग्रस्त लोगों को शरीर में जलन की शिकायत होने लगती है।
 
4. अल्कोहल (Alcohol): अल्कोहल यानी शराब, बीयर आदि शरीर में एनर्जी के लेवल को प्रभावित करते हैं। अल्कोहल का सेवन करने से थायरॉइड ग्रस्त लोगों की नींद में खलल की शिकायत और बढ़ जाती है। इसके अलावा इससे ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis=A medical condition in which the bones become brittle and fragile from loss of tissue, typically as a result of hormonal changes, or deficiency of calcium or vitamin D-एक ऐसी चिकित्सकीय स्थिति, जिसमें हार्मोनल परिवर्तन, या कैल्शियम या विटामिन डी की कमी के परिणामस्वरूप टिश्युओं/ऊतकों के नुकसान के कारण हड्डियां भंगुर और नाजुक हो जाती हैं।) का खतरा भी बढ़ जाता है।
 
5. वनस्पति घी: यहां समझने वाला महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वनस्पति घी को हाइड्रोजन में से गुजार कर बनाया जाता है। जो अच्छे कोलेस्ट्रॉल को खत्म कर देता है और बुरे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता हैं। पहले से बढ़े हुए थायरॉइड से ग्रस्त पेशेंट को जो-जो भी परेशानियां पैदा हो रही होती हैं, वनस्पति घी उन्हें और तेजी से बढ़ा देता हैं। ध्यान रहे वनस्पति घी का इस्तेमाल खाने-पीने की दुकानों में जमकर होता है। इसलिए बाहर का फ्राइड खाना न ही खाएं तो बेहतर होगा। थायरॉइड से पेशेंट को तो बाहरी तले, भुने और ऑयली भोजन से 100% परहेज करना चाहिये।
 
6. सोया उत्पाद: सोयाबीन में फाइटो एस्ट्रोजन पाया जाता है, जो हाइपोथायराइडिज्म को बढाता है। अत: सोया उत्पादों का सेवन नहीं करें।
 
7. मीठा नहीं खायें: मीठा खाने से शरीर के मेटाबॉलिज्म पर असर पड़ता है और हाइपोथायराइडिज्म की समस्या तेजी से बढती है। अत: मीठे का सेवन बिलकुल भी नहीं करें।
 
8. ब्रोकली: ब्रोकली का सेवन करने से शरीर के लिये जरूरी आयोडीन के सामान्य अवशोषण में बाधा उत्पन्न होती है। अत: इसका सेवन नहीं करें।
 
उपरोक्त के अलावा:
(1) धूम्रपान नहीं: अगर थायरॉइड से बचना चाहते हैं तो धूम्रपान एवं तम्बाखू का सेवन पूरी तरह से बंद कर दें।
(2) शराब व कैफीन नहीं: शराब व कैफीन से भी जितना हो सके दूरी बनाए रखें।
(3) तनाव मुक्त: अपने आप को हमेशा तनाव मुक्त रखें।
(4) पानी: हमेशा साफ-सुथरा और अधिक मात्रा में पानी ही पीते रहें।
(5) चाट मसाले: ज्यादा तली-भुनी और मिर्च-मसाले वाली चीजों से दूर रहें।
 
उपरोक्त के साथ-साथ जांच:
(1) कोई परेशानी नहीं तो भी स्वस्थ लोग भी हर पांच साल में थायरॉइड की जांच अवश्य करवाते रहें। खासकर, 35 साल के बाद तो यह और बहुत जरूरी हो जाता है।
(2) नियमित रूप से अपने रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल की जांच करवाते रहें और इसे किसी डायरी में नोट करते रहें।
(3) समय-समय पर अपना वजन ज्ञात करते रहें और जब भी वजन असंतुलित होने लगे, तो उसे नियंत्रित करने का प्रयास करें।
 
कुछ घरेलु उपाय:
1. अलसी के बीज: यदि पाचन तंत्र अस्वस्थ नहीं है तो अलसी के ऑर्गेनिक बीज थायरॉयड की समस्या को दूर करने में बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। केवल एक चम्मच अलसी के बीज का पाउडर 1 गिलास दूध या फिर फ्रूट जूस में मिलाकर नियमित रूप से सेवन करना है।
 
2. धनिया: थायरॉयड की समस्या से मुक्ति पाने के लिए ऑर्गेनिक हरा धनिया बहुत फायदेमंद है। इसे पीसकर चटनी बना लें और सुबह-शाम इस चटनी का सेवन करें। ऐसा करने से थायरॉयड जैसी समस्या से बहुत ही जल्द निजात पा सकती है।
 
3. दूध और दही का सेवन:
दूध और दही का सेवन थायरॉयड से बचाव करने में काफी फायदेमंद हो सकता है। थायरॉयड की समस्या से पीड़ित लोगों को दूध और दही का सेवन अवश्य करना चाहिए। दूध और दही में मौजूद कैल्शियम, मिनरल्स और विटामिन्स थायरॉयड से ग्रसित पुरुषों को स्वस्थ बनाए रखने में विशेष रूप से उपयोगी हैं।
 
4. मुलेठी का सेवन:
थायरॉयड के मरीजों को थकान बड़ी जल्दी होने लगती है और वे जल्दी ही थक जाते हैं। ऐसे में मुलेठी का सेवन करना बहुत फायदेमंद हो सकती है। मुलेठी में मौजूद तत्व थायरॉयड ग्रंथी को संतुलित करते हैं। थकान को उर्जा में बदल देते हैं। मुलेठी थायरॉयड में कैंसर को बढ़ने से भी रोकता है।
 
5. अदरक: सभी घरों में आमतौर पर उपयोग की जाने वाली चीजों में से एक अदरक है। इसमें मौजूद गुण जैसे पोटेशियम, मैग्नीश्यिम आदि थायरॉयड की समस्या से निजात दिलवा सकते हैं। अदरक में एंटी-इंफलेमेटरी गुण थायरॉयड को बढ़ने से रोक सकते हैं और उसकी कार्यप्रणाली में सुधार ला सकते हैं।
 
6. साबुत अनाज:
जौ, गेंहू और साबुत अनाज से बने पदार्थों का सेवन करने से थायरॉयड की समस्या से बचा जा सकता है। क्योंकि साबुत अनाज में फाइबर, प्रोटीन और विटामिंस की भरपूर मात्रा होती है जो थायरॉयड को बढ़ने से रोकने मददगार हो सकते हैं। इसलिए थायरॉयड से पीड़ित पेशेंट को अपनी डाइट में साबुत अनाजों को शामिल करना चाहिये।
 
7. गेहूं और ज्वार:
थायरॉयड ग्रंथी को बढ़ने से रोकने में गेहूं और ज्वार का इस्तेमाल भी मददगार हो सकता है। गेहूं और ज्वार आयुर्वेद में थायरॉयड की समस्या को दूर करने का बेहतर और सरल प्राकृतिक उपाय बताया गया है। इसके अलावा इनका सेवन साइनस, उच्च रक्तचाप और खून की कमी जैसी समस्याओं की रोकथाम में भी प्रभावी सिद्ध होते हैं।
 
सबसे महत्वपूर्ण अनुभवजन्य सलाह:    
(1) योग और व्यायाम: किसी योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में नियमित रूप से योग व व्यायाम अवश्य करें। परिपूर्ण व्यायाम हेतु संभव हो तो प्रतिदिन दौड़ने की आदत डालें।
    
(2) महिलाएं: खासतौर पर महिलाएं अपने हार्मोंस को संतुलित रखने का प्रयास करें। एस्ट्रोजन हार्मोंस का स्तर अधिक होने पर थायरॉयड की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है। महिलाओं को हार्मोंस में बदलाव पर नजर रखनी चाहिए। गर्भ धारण करने, गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद में भी थायराइड की जांच जरूर करवाएं।
 
अस्वीकरण: इस लेख में दी गयी जानकारी, सलाह आदि का मकसद केवल जनहित में हेल्थ अवेयरनेस लाना है। यह जानकारी किसी भी तरह से और किसी भी रूप में योग्य चिकित्सक की राय का विकल्प नहीं हो सकती है। उपचार हेतु हमेशा किसी हेल्थ एक्सपर्ट या अपने उपचारक/चिकित्सक से ही परामर्श करें।
 
जोहार।
 
आपका स्वास्थ्य रक्षक सखा-आदिवासी ताऊ: (एडवांस पेड टेलिफोनिक हेल्थ केयर एवं काउंसलिंग सर्विसेज), आदिवासी जड़ी बूटियों द्वारा 1975 से और होम्योपैथी तथा बायोकेमी द्वारा 1990 से हेल्थ केयर का अनुभव। संचालक: निरोगधाम, जयपुर, राजस्थान। 16.11.2020

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