आश्चर्य यह नहीं कि लोग बीमार क्यों हैं, बल्कि आश्चर्य तो यह है कि अब भी कुछ लोग स्वस्थ कैसे हैं?

आश्चर्य यह नहीं कि लोग बीमार क्यों हैं,
बल्कि आश्चर्य तो यह है कि अब भी कुछ लोग स्वस्थ कैसे हैं?
हेल्थ केयर एवं हेल्थ अवेयरनेस का मिशन: आश्चर्य यह नहीं कि लोग बीमार क्यों हैं, बल्कि आश्चर्य तो यह है कि अब भी कुछ लोग स्वस्थ कैसे हैं? ‘स्वस्थ रहने के लिये हम प्रकृति की रक्षा करेंगे तो प्रकृति हमारी रक्षा करेगी।’
नोट: यदि हेल्थ केयर एवं हेल्थ अवेयरनेस के इस लेख को पढने में आपने कुछ मिनट खर्च नहीं किये तो समझें आपने अपने स्वास्थ्य रक्षक अमूल्य जानकारी की अनदेखी कर दी है। पढने के बाद चाहें तो मित्रों के साथ शेयर भी कर सकते हैं।

तत्कालीन समय के चिकित्सा जगत के विद्वान वैद्य जानकी शरण वर्मा, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश द्वारा वर्ष 1936 में लिखित ‘रोगों की अचूक चिकित्सा’ नामक एक बहुमूल्य पुस्तक पढने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिसमें वे उस समय यानी 1936 के हालातों के अनुसार लिखते हैं कि-

”क्या मनुष्य के पढने लिखने, विद्योपार्जन करने, सभ्य बनने और सभी तरह शक्तिमान बनने का यही नतीजा है कि स्वस्थ यानी तंदुरुस्त और सुखी रहने के बदले वह ना-ना प्रकार के रोगों का शिकार हो जाये? मनुष्यों में जो कम पढे-लिखे और सभ्यता में पीछे हैं, वे पढे-लिखे और सभ्यों की तुलना में कम रोगग्रस्त होते हैं। इसका कारण क्या है? यही कि हम प्रकृति से बहुत दूर हट गये हैं।”

मित्रो साचें 1936 में वैद्य वर्मा जी प्रकृति से दूर हटने पर इतनी गहरी चिंता व्यक्त की गयी थी, तो सोचिये आज के दौर में हम कितने प्राकृतिक रह गये हैं। ऐसे में आज के समय में किसी का बीमार होना आश्चर्य की बात नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि वर्तमान में किसी का स्वस्थ होना आश्चर्य की बात है!

लोगों के बीमार पड़ने के बारे में वैद्य जानकी शरण वर्मा जी अपनी उक्त बहुमूल्य किताब में 1936 में कुछ महत्वूपर्ण बातें लिखते हैं। जिन्हें मैं पाठकों के ज्ञानार्जन हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं:-

1. चिकित्सा विज्ञान की प्रगति और डॉक्टरों की संख्या बढ जाने के कारण सभ्य एवं अधिक पढे-लिखे लोगों ने प्राकृतिक जीवन से किनारा कर लिया है और अपने शरीर को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी जो खुद की होती है, उसे उन्होंने डॉक्टरों पर छोड़ दिया है! ईमानदारी से सोचें क्या आपके उत्तरदायित्वों का निर्वाह कोई दूसरा यानी डॉक्टर कर सकता है?

2. असल में डॉक्टर का काम तब शुरू होता है, जब आप बीमार हो जाते हैं। जबकि अप्राकृतिक जीवन जीने वाले लोग तो डॉक्टर के भरोसे बीमारियों को निमंत्रित कर रहे हैं।

3. आजकल (1936 में) शायद ही कोई माई का लाल ऐसा होगा, जिसे कोई बीमारी नहीं सताती हो। कब्ज तो साधारण बात है। क्या छोटा, क्या बड़ा? क्या जवान, क्या बुढ्ढा? क्या अंगरेज, क्या हिंदुस्तानी? सबके सब कब्ज के शिकार हैं। जुकाम-खांसी हो जाना तो मामूली बात है। हर तीसरे महीने जुकाम का स्वागत करना पड़ता है। साल में एक दो बार बुखार भी आ घेरता है। इन सबके अलावा बवासीर, गठिया, बहुमूत्र, ब्लड प्रेशर, दमा, सिरदर्द आदि जीर्ण रोगों से ग्रस्त लोगों की संख्या लगातार बढती जा रही है। चालीस साल तक पहुंचते-पहुंचते, कुछ को इससे पहले ही कोई न कोई रोग आ दबोचता है। जिनसे मरने तक छुटकारा नहीं मिलता।

4. एक मजेदार बात देखिए एक ओर तो रोग रूपी शत्रुओं की संख्या बढती जा रही है, दूसरी ओर इलाज करने वाले डॉक्टरों की संख्या में तेजी से बढोतरी हो रही है। अलग-अलग रोगों के इलाज हेतु अलग-अलग डॉक्टरी पढाई शुरू हो गयी है। आज यह कहना कठिन है कि रोग अधिक हैं या डॉक्टर? तरह-तरह के डॉक्टरों के दल के दल उमड़ पड़े हैं। आयुर्वेदिक वैद्य, यूनानी हकीम, ऐलोपैथिक डॉक्टर और होम्योपैथिक आदि पद्धतियों के डॉक्टर अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र और तीर-तरकस लिये रोगों से लड़ने को खड़े हैं। फिर भी न तो कब्ज मरता है, न जुकाम। न तो दमा भागता है और न ही गठिया। लोग उतने ही, बल्कि पहले से अधिक लोग बीमार हो रहे हैं और रोग लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं!

5. लोग स्वस्थ हों तो हों कैसे? हम शरीर के संचालन के प्राकृतिक नियमों की पालना नहीं करते। हम अपने शरीर को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी खुद नहीं लेते। न ही शरीर के प्राकृतिक नियमों के अनुसार हम जीना चाहते हैं। ऐसे में हमारे शरीर से रोग टस से मस नहीं होते। रोग शरीर में अपना डेरा जमा लेते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि हम अपने उत्तरदायित्वों को तो निभाते नहीं, खुद हम स्वस्थ रहने के लिये कुछ करना नहीं चाहते और रोगमुक्त नहीं होने पर सारी जिम्मेदारी चिकित्सकों के मत्थे मढ देते हैं। नतीजा यह होता है कि हम बीमार के बीमार ही बने रहते हैं और लाचार तथा बेजार होकर अपने दिन बिताने को मजबूर हो जाते हैं। अंत में भाग्य को कोसते रहते हैं। मगर इस सबके कारण हमरी नयी पीढी, जिसे अपने जीवन संघर्ष में आगे बढना पड़ता है, उनके कंधों पर अपनी सेवा की जिम्मेदारी डाल देते हैं। सेवा नहीं मिलने पर संतानों को कोसते रहते हैं, लेकिन हम इस बात को मानने को तैयार नहीं कि हमने अपना जीवन प्राकृतिक तरीके से नहीं जिया, इस कारण हम अनेकों प्रकार की बीमारियों के लिये खुद ही जिम्मेदार हैं।

6. तंदरुस्त रहना असंभव नहीं है। बशर्ते हम प्राकृतिक जीवन जियें। हम में से अधिकतर तो इस कारण बीमार हैं, क्योंकि हम में से अधिकतर तो आलस्य, सुख सुविधाओं, एश-ओ-आराम और सभ्यता के कारण प्राकृतिक जीवन जीना छोड़ चुके हैं। जबकि सच्चाई यह है कि तंदुरुस्त रहना आसान एवं स्वाभाविक है, जबकि बीमार बनना कठिन और अस्वाभाविक है। आदिवासियों तथा किसानों को देखिये वे अपने प्राकृतिक जीवन जीने और लगातार परिश्रम करते रहने के कारण लम्बा और स्वस्थ जीवन जीते हैं। यदाकदा बीमार हो भी जाते हैं तो बजुर्गों के अनुभवों और अपनी जड़ी-बूटियों से ही काम चला लेते हैं। जंगली जानवर बीमार ही नहीं होते, लेकिन सभ्य लोगों के पालतू जानवर बीमार होने लगते हैं। कारण प्रकृति से दूर हटे और बीमारी की ओर बढे। आप-हम इस पृथ्वी पर रोगी बनने, नशा करने और क्षण-क्षण कराहते हुए मरने के लिये पैदा नहीं हुए हैं। प्रकृति से अपनापन और दोस्ती बनाकर रखें।

7. शरीर के नियमों को समझें। यदि सांस, पसीना, पेशाब और पाखाने के जरिये शरीर की गंदगी बाहर नहीं निकलेगी तो बीमार होने से कोई रोक नहीं सकता और फिर कोई डॉक्टर आपके स्वास्थ को पहले जैसा स्वस्थ नहीं कर सकता। याद रहे शरीर की रक्षा के लिये इन विकारों का बाहर निकलना बेहद जरूरी है। अन्यथा आने वाले 50 सालों में हम कितने ही चिकित्सक और दवाखाने जुटा लें रोग तथा रोगियों से मुक्ति मिलना असंभव होगा।

उपरोक्त पुस्तक 1936 में लिखी गयी। लेखक ने 50 साल आगे की भयावह परिकल्पना की थी। 50 साल 1986 में पूर्ण हो गये। बीमार और बीमारियों की भयावहता साफ दिख रही है। इस पृष्ठभूमि में, मैं अपने अनुभव से बताना चाहता हूं कि शरीर को स्वस्थ बनाये रखने हेतु वर्तमान में जहां सांस/श्वांस, पसीना, पेशाब और पाखाने के जरिये शरीर से गैर जरूरी गंदगी का निष्कासन बहुत जरूरी है। वहीं प्राणायाम, योगा, मैडीटेशन, विपश्यना आदि के जरिये तनावमुक्त रहकर, नियमित शारीरिक श्रम करते हुए, जरूरी व्यायाम, उचित खानपान एवं नशामुक्त जीवन जीना भी बहुत जरूरी है।
ध्यान दें यदि हम प्राकृतिक रीति से शरीर से गैर जरूरी गंदगी को बाहर नहीं निकलने देंगे तो शरीर अन्य तरीकों से इसे निकालकर अपने आप को स्वस्थ बनाने की प्राकृतिक कोशिश करता है। जैसे-फोड़े फुंसी, जुकाम, बुखार, दस्त, पेचिश, आंव इत्यादि के द्वारा गंदगी का निष्कासन। मगर हम गंदगी निकालने के इन सब तकलीफदेह तरीकों को झेल नहीं पाते और तुरंत डॉक्टर के पास जाकर इन्हें रोकने यानी दबा देने हेतु दवाइयों का सेवन करते हैं।

कुछ समय बाद शरीर फिर से गंदगी बाहर निकालने की अधिक उग्र कोशिश करता है। हमारे शरीर में बवासीर, भगंदर-फिस्टुला-Fistula, अल्सर, दाद-खाज-खुजली, एक्जिमा-छाजन, अस्थमा-दमा, नजला, माइग्रेन, रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होने से विभिन्न प्रकार की एलर्जी उत्पन्न होने लगती हैं, गठिया, बहुमूत्रता, गोनोरिया, प्रमेह, प्रदर, मासिक विकार, थायराइड-Thyroid, बल्ड प्रेशर आदि दोष प्रकट होने लगते हैं। इन विभिन्न रूपों में निकलने वाले शारीरिक दोषों के उपद्रवों एवं रोगाणुओं को भी हम बीमारी मानकर जल्दी से जल्दी दबा देने को आतुर रहते हैं।

हमारी इन्हीं नासमझियों की वजह से ही डॉक्टरों का धंधा तेजी से बढ रहा। अपनी मूर्खताओं और रोग दबाने वाली चिकित्सा की मेहरबानी से अंत में हम में से अनेक लोग असमय हृदयाघात, पक्षाघात, ब्रेन हेमरेज, कैंसर, मनोविकृति जैसी असाध्य एवं जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। सबसे दु:खद आश्चर्य तो तब होता है, जब प्रकृति विरुद्ध जीवन जीने वाले और शरीर की गंदगी को बाहर नहीं निकलने देने के लिये हरसंभव कोशिश करके असाध्य रोगों से ग्रस्त हो जाने वाले पेशेंट मुझ जैसे प्राकृतिक उपचारकों से गारण्टीड एवं परमानेंट इलाज की उम्मीद करते हैं!

यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि इस प्रकार के विषैले द्रव्यों और रोगाणुओं से ग्रस्त स्त्री-पुरुष के मिलन से होने वाली संतानें जन्म से ही अनेक अनेक शारीरिक तथा मानसिक दोष तथा बीमारियों के जीवाणुओं को लेकर पैदा हो रही हैं। जिन्हें उन्हें ताउम्र मां-बाप के उपहार के रूप में भोगना पड़ता है। लोग विवाह से पहले गोत्र और जन्मपत्री तो मिलाते हैं, लेकिन हेल्थ के बारे में न जाने क्यों अनजान बने रहना चाहते हैं? मेरे हेल्थ केयर एवं हेल्थ अवेयरनेस के मिशन का मकसद आप सभी के सहयोग से इन सब बातों से हर आम ओ खास को आगाह-जागरूक करना और उनके स्वास्थ्स की रक्षा करना है। इस मकसद की प्राप्ति हेतु कृपया इस लेख को अधिकतम लोगों को पढने को प्रेरित करें।

उपरोक्त पृष्ठभूमि यानी इन हालातों में, निष्कर्ष रूप में मेरा भी यही मानना है कि हम लोगों को यदि स्वस्थ रहना है तो बहुत जरूरी है कि-

1. अपने आप को स्वस्थ बनाये रखने की जिम्मेदारी हम खुद स्वीकार करें, क्योंकि इस संसार में हमारे शरीर की हम से अधिक अन्य किसी को जरूरत नहीं है। हम से अधिक हमारे शरीर के बारे में कोई डॉक्टर या प्रयोगशाला नहीं जान सकते।
2. श्रम करने से कोई छोटा या हीन नहीं बनता, बल्कि श्रम करने से स्वस्थ्य की रक्षा होती है। अत: जब भी मौका मिले शारीरिक श्रम करने से पीछे नहीं रहें।
3. चाय सहित सभी प्रकार के नशे और मांसाहार अनेकानेक बीमारियों के मूल कारक हैं। इनसे हमको खुद ही मुक्त रहना है। दूसरा कोई कुछ नहीं कर सकता।
4. यदि हमने अभी तक अप्राकृतिक यानी अस्वाभाविक जीवन जिया है और अपने शरीर को अस्वस्थ बना लिया है तो किसी अनुभवी व्यक्ति और, या उपचाकर की मदद से-
(1) नियमित रूप से श्रम या व्यायाम करें।
(2) प्राणायाम, योगा, मैडीटेशन, विपश्यना आदि का अभ्यास करें।
(3) भय एवं तानवमुक्त जीवन कैसे जिये, इसके लिये काउंसलिंग प्राप्त करें।
(4) कब्ज हो या नहीं, हर 3 महिने में जुलाब लेकर पेट की सफाई करते रहें और साल में दो बार कृमिनाशक-Anthelmintic औषधियों का भी अवश्य सेवन करें।
(5) 80 फीसदी से अधिक लोगों का पाचन तंत्र-Digestive System कमजोर या अस्वस्थ है। जिससे उन्हें खुलकर भूख नहीं लगती तथा कब्ज, अपच, गैस आदि तकलीफें रहती हैं। ऐसे में पाचन तंत्र के स्वस्थ-सामान्य होने तक और कब्ज समाप्त होने तक नियमित रूप से दुष्प्रभाव रहित जरूरी कब्ज नाशक तथा पाचक जड़ी-बूटियों-Constipation Killer and Digestive Herbs का सेवन करें।
#नोट: जुलाब-दस्तावर, लीवर एवं पाचन तंत्र को मजबूत करने वाली अनुभव सिद्ध देशी जड़ी-बूटियों से निर्मित पाउडर प्राप्त करने तथा काउंसलिंग प्राप्ति हेतु 8561955619 पर वाट्सएप कर सकते हैं। पीलिया की दवाई फ्री में उपलब्ध करवायी जाती है।
(6) सुबह 7.30 बजे तक पौष्टिक नाश्ता, 13.30 बजे तक भरपेट अच्छा लंच, लंच के बाद सेंधव एवं काले नमकयुक्त छाछ या नींबू की शिकंजी पीयें और 20 बजे तक सुपाच्य हल्का डिनर नियमित रूप से लेने की आदत डालें। दूध पीना जरूरी हो तो सोने से कम से कम 1 घंटा पहले पीयें।
(7) खाली पेट यानी नाश्ते से पहले चाय का सेवन आज से ही हमेशा को बंद करें।
(8) धूम्रपान, गुटखा, शराब आदि सभी नशों एवं मांसाहार का तुरंत त्याग करें।
 
#अंतिम_संदेश: वर्तमान में जबकि सरकारों द्वारा किसान को खेती में जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करने को उकसाया जा रहा है। दुष्प्रभावकारी और रोगों को दबाने एवं बढाने वाली चिकित्सा का तेजी से प्रसार हो रहा है। ऐसे में आश्चर्य यह नहीं कि लोग बीमार क्यों हैं, बल्कि आश्चर्य तो यह है कि अब भी कुछ लोग स्वस्थ कैसे हैं? अत: हमें समझना होगा कि यदि हम प्रकृति की रक्षा करेंगे तो प्रकृति भी हमारी रक्षा करेगी। हर एक जीव को स्वस्थ रखने के लिये जरूरी प्राकृतिक पर्यावरण एवं वातावरण को स्वस्थ रखने हेतु परम्परागत तथा औषधीय पेड़-पौधे लगायें, पेड़-पौधों के सानिध्य में रहें और जरूरी होने पर पेड़-पौधों से निर्मित ऑर्गेनिक देशी जड़ी-बूटियों का सेवन करें। जब भी अपने दोस्तों से मिलें, उन्हें सार्वभौमिक अभिवादन ‘जोहार’ करें-कहें-बोलें! ‘#जोहार’ यानी प्रकृति की जय हो।
अधिक जानकारी हेतु वेबसाइट पर विजिट करें। 
शुभकामनाओं सहित आपका स्वास्थ्य रक्षक सखा-आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा: (एडवांस पेड टेलिफोनिक हेल्थ केयर एवं काउंसलिंग सर्विसेज), आदिवासी जड़ी बूटियों द्वारा 1975 से और होम्योपैथी तथा बायोकेमी द्वारा 1990 से हेल्थ केयर एवं हेल्थ अवेयरनेस का अनुभव। संचालक: निरोगधाम (ऑर्गेनिक आदिवासी जड़ी-बूटी उत्पादन एवं वितरण फॉर्म), जयपुर, राजस्थान। WhatsApp No.: 8561955619 (Only Urgent Call: 10 to 18 Hrs only), 03.10.2020.

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