गंजेपन के चकत्ते (Alopecia or Patchy Baldness) ठीक हो सकते हैं

 

गंजेपन के चकत्ते (Alopecia or Patchy Baldness) ठीक हो सकते हैं

गंजेपन के चकत्ते यानी Alopecia or Patchy Baldness यह गंजेपन की ऐसी विचित्र समस्या है, जिसमें सिर, दाढ़ी, आंखों की भौहों और गुप्तांगों (Head, beard, eyebrows and genitals) के बाल चकत्तों में उड़/झड़ जाते हैं। जहां-जहां से बाल उड़ते हैं, वहां-वहां पर ऐसे निशान/चकत्ते पड़ जाते हैं, जैसे कि फोड़े के ठीक होने के बाद चमड़ी पर घाव के जैसे निशान हुआ करते हैं। चमड़ी बिल्कुल चिकनी (Smooth Skin) हो जाती है। जहां-जहां पर भी नजर आते हैं, वहां-वहां पर इनके कारण इंसान बदरूप सा नजर आता है।

व्यक्तिगत अनुभव:
जनवरी, 1992 में अचानक 1 महीने के अंदर मेरे सिर में गोल-गोल 4 चकत्ते हो गये थे। दो ललाट के ठीक ऊपर तथा 2 सिर में पीछे की ओर गुदनी में (in the back of the neck) हो गये थे। जहां-जहां से बाल निकले वहां-वहां ऐसे निशान हो गये, मानो फोड़े के निशान हों। दिखने में बहुत भद्दे लगते थे। जिन्हें छिपाने के लिये मैंने बालों को काफी लम्बा बढने दिया। मैं मानसिक रूप से भी बहुत परेशान रहने लगा था।

मैंने 12-13 साल की आयु में कुछ ऐसी आदिवासी देशी जड़ी-बूटियों के बारे में जाना था, जिनसे इस प्रकार का गंजापन ठीक हो सकता था। मगर उन जड़ी बूटियों को किसी पेशेंट पर प्रयोग में लाने का मुझे अवसर ही नहीं मिला और उन्हें लिख करके मैंने कहीं ऐसी जगह पर रख दिया कि वे फिर से मुझे उस समय मिल ही नहीं पायी।

यहां पर यह भी बताता चलूं कि मैंने अनेक अड़चनों को पार करते हुए जैसे-तैसे 1989 में होम्योपैथी की पढाई पूर्ण की थी। मगर व्यावहारिक अनुभवहीनता के कारण मैं खुद अपना होम्योपैथक इलाज करने का साहस जुटा पाता, उससे पहले तो अपनी सूरत देख-देखकर आत्मविश्वास ही खो बैठा था। इस कारण होम्योपैथी की दवाई लेने के बजाय एलोपैथी की शरण में चला गया।

उन दिनों मैं रतलाम में रेलवे में मजदूरी किया करता था। अत: रतलाम रेलवे अस्पताल में डॉक्टर को दिखाया। 2 महिना तक दवाई लेने के बाद भी 1 प्रतिशत भी बालों की रिकवरी नहीं हुई। मुझे बम्बई स्थिति रेलवे के जगजीवन राम हॉस्पीटल में रैफर किया गया। 3 महीने तक इलाज लेने के बाद भी जब कोई लाभ नहीं मिला तो मुझे निराशा ने बुरी तरह से घेर लिया। रतलाम में कुछ होम्योपैथ थे, उनसे भी सम्पर्क किया, मगर निराशा ही हाथ लगी। इस प्रकार दिसम्बर, 1992 तक गंजेपन के चकत्ते इतने बढ गये थे कि बड़े बालों में से भी साफ दिखाई देते थे।

मैं जब-जब अपने पैतृक गांव आता तो हर बार आदिवासी जड़ी-बूटियों के पुराने कागजों को तलाशता, मगर हर बार असफलता ही मिलती। तब मैं आज की भांति अनुभवी आदिवासी ताऊ और कांउसलर तो था नहीं जो तनाव और परेशानियों से लड़ पाता। इस कारण इन हालातों में, मैं काफी तनाव में रहने लगा था।

इसी दौरान 1993 के नवम्बर-दिसम्बर में अचानक अपने आप में एक विश्वास उत्पन्न हुआ कि  होम्योपैथिक दवाइयों का गहनता से अध्ययन किया जाये। मैंने 15 दिन तक लगातार अनेक लेखकों की मैटीरिया मेडिका (Materia Medica) और कुछ रिपर्टरियों का अध्ययन किया। अपने सभी लक्षणों का बारीकी से मिलान किया और विश्लेषण किया।

अंतत: मैंने खुद के लिये होम्योपैथी की दो दवाइयों का चुनाव किया। आश्चर्यजनक रूप से 3 महीने में भूरे रंग के बाल उगते दिखे तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। देखते ही देखते 7-8 महिने में पूरे बाल पूर्ववत उग आये। जो तब के मेरे परिवारजनों और परिचितों के बीच चमत्कार से कम नहीं था।

इसे संयोग ही कहा जाये कि दिसम्बर, 1998 में मुझे आदिवासी जड़ी-बूटियों के पूर्वजों के अनुभवों के नुस्खें लिखे कागज फिर से मिल गये और 1999 में इस प्रकार के गंजेपन के शिकार 7 पेशेंट्स ने मुझ से उपचार लिया जो 4 से 8 महीने में पूरी तरह से स्वस्थ हो गये। तब से अभी तक कोई 150 से अधिक इस प्रकार के पेशेंट का सफलतापूर्वक उपचार कर चुका हूं। मगर इस दौरान 2-3 महीने तक उपचार करने के बावजूद भी 2 पेशेंट को मैं 1 प्रतिशत भी ठीक नहीं कर सका। जिनका आगे चुनौतीपूर्ण विश्लेषण करता, उससे पहले ही उन्होंने मुझ से सम्पर्क तोड़ लिया और किसी दूसरे डॉक्टर के पास चले गये। आगे क्या हुआ मुझे नहीं पता, मगर उन्होंने धैर्य नहीं रखा, इसका मुझे बहुत दु:ख है। इसलिये अकसर मैं अपने पेशेंट्स को सलाह देता हूं कि उपचार के दौरान धैर्य और विश्वास अवश्य बनाये रखें।

अभी पिछले महीने एक ऐसी 35 वर्षीय औरत को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ मिला है, जिसके सिर में गंजेपन के 20 से अधिक गोल चकत्ते हो गये थे। वह 3 साल से अनेक उपचार लेकर थक चुकी थी। उसे लगातार 12 महीने तक उपचार लेना पड़ा। खुशी की बात है कि वह अब पूरी तरह से स्वस्थ है। मेरा अपना अनुभव है कि गंजेपन के चकत्तों का रोगी जितना अधिक पुराना होगा, उसके ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगता है। विशेष रूप से जिन पेशेंट्स का डाइजेशन सिस्टम यानी पाचन तंत्र और इम्यूनिटी सिस्टम अस्वस्थ या कमजोर होता है, उनके उपचार में लम्बा समय लगता है।

मगर अंत में सभी पाठको से यही कहूंगा कि प्रकृति प्रदत्त अनुपम जड़ी-बूटियों की कृपा और हमारे पूर्वज आदिवासियों का उपकार है कि हम इनके माध्यम से तथा महामानव हैनिमैन की खोज होम्योपैथी की दुष्प्रभाव रहित दवाइयों के मार्फत अनेक लाइलाज मानी जाने वाली बीमारियों से पीड़ित मानवता को मुक्त करने में सफल हो पा रहे हैं। इसलिये अंत में ‘जोहार का उद्घोष करना हमारा कर्त्तव्य बनता है।’ जोहार यानी ‘प्रकृति की जय हो।’

*आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा*
आदिवासी जड़ी-बूटियों, होम्योपैथिक और बायोकेमिक दवाइयों का परम्परागत उपचारक। दाम्पत्य एवं वैवााहिक विवाद तथा यौन समस्याओं का काउंसलिंग के जरिये समाधान करना। आदिवासी जड़ी-बूटियों पर शोध, प्रयोग, लेखन तथा निरोगधाम (जयपुर, राजस्थान) पर इनकी आर्गेनिक रीति से पैदावार करना। लाइलाज तथा असाध्य समझे जाने वाले अनेकों रोगों से पीड़ित हजारों रोगियों के सफल उपचार का लम्बा अनुभव। विभिन्न विषयों पर सतत चिंतन, लेखन और व्याख्यान। *उपचार एवं परामर्श हेतु 8561955619 पर वाट्सएप करें। No Clinic. Only Online Services.

लेखन दिनांक: 03.02.2020, संपादन दिनांक: 03.02.2020

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