गलतफहमी: ल्यूकोरिया ‘यह तो सभी को होता है।’ Misconception: Leukorrhea ‘It happens to everyone.’

 
गलतफहमी: ल्यूकोरिया ‘यह तो सभी को होता है।’
Misconception: Leukorrhea ‘It happens to everyone.’
 
जबलपुर मध्य प्रदेश की ल्यूकोरिया से पीड़ित मेरी पेशेंट श्रीमती डॉ. (प्रोफेसर) सरला माहेश्वरी (बदला हुआ नाम) के प्रकरण का सारांश, जो मेरे आग्रह पर, (अन्य पीड़ित महिलाओं के हितार्थ) उन्होंने अपने शब्दों में लिखकर भेजा है, जो आंशिक संपादन के बाद जनहित में प्रस्तुत है:-
 
मैं जब 12-13 साल की थी, तब से मुझे सफेद पानी आना यानी ल्यूकोरिया शुरू हुआ था। मैंने आपनी बड़ी बहन, भाभी, चाची, बुआ, मां, मामी सबसे बात की, सबने एक ही जवाब दिया। ‘यह तो सभी को होता है।’ कुछ बड़ी हुई तो सहेलियों से बात हुई तो अधिकांश ने कहा ‘यह तो सभी को होता है।’ इसलिये मैंने सफेद पानी को भी माहवारी जैसा ही प्राकृतिक स्राव मानकर स्वीकार कर लिया! यद्यपि इस कारण मैं बहुत असहज रहने लगी थी। 20 साल की आयु में जलन होने लगी, जो 2 वर्ष बाद तेज जलन एवं खुजली में बदल गयी।
 
23 की उम्र में तहसीलदार पद पर पदस्थ 29 वर्षीय अनुभवी और परिपक्व पुरुष से विवाह हुआ। वो पहली ही मुलाकात में मेरी समस्या को समझ गये और पूछा अभी तक इलाज क्यों नहीं करवाया? मैंने उन्हें भी कह दिया कि ‘यह तो सभी को होता है।’ मेरी बात पर हंसने लगे। कुछ गुस्सा भी हुए। उन्होंने मुझे प्रतिष्ठा प्राप्त स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि माथुर (बदला हुआ नाम) को दिखाया। जांच पड़ताल के बाद मुझे 15 दिन की एण्टीबायोटिक दवाइयां दी गयी। जिनसे सफेद पानी आना पूरी तरह से बंद हो गया।
 
मैं बहुत खुश हुई। मगर दवाई बंद करने के 2-3 दिन बाद फिर से सफेद पानी चालू हो गया। साथ ही मेरा डाइजेशन जो पहले से ही खराब था, अधिक खराब हो गया और मुझे भयंकर कब्ज हो गयी। मुझे फिर से दिखाया गया। इस बार पहले वाली दवाइयां रिपीट की गयी, साथ में पेट साफ करने वाला सीरप और दिया गया। दवाइयां बंद करने के बाद फिर से वही सारी तकलीफें शुरू हो गयी। साथ में गैस भी बनने लगी और सिर दर्द भी रहने लगा। आखिर में डॉक्टर मैडम ने बोल दिया कि दवाइयां रैग्यूलर लेनी होंगी।
 
इसी बीच मेरी पीएचडी कम्पलीट हो गयी और जॉब भी लग गया, लेकिन सफेद पानी की तकलीफ से मुक्ति नहीं मिली। इस वजह से मुझ से अधिक मेरे पति परेशान रहने लगे। मैं तो उन्हें चिड़ाने के लिये लिये बोल देती आप हंसते रहो, लेकिन ‘यह तो सभी को होता है।’
 
कुछ समय बाद हम आयुर्वेद के वैद्यजी से मिले। उन्होंने कुछ सीरप दिये, जिनका 3 महिने तक सेवन किया। जब तक लिया कुछ आराम मिला, दवा बंद करने के बाद फिर वही तकलीफ शुरू! अंतत: मैंने तय कर लिया कि अब कोई दवा नहीं लूंगी, क्योंकि ‘यह तो सभी को होता है।’ मेरी सास और ननद भी मेरी बात से सहमत हो गयी। फिर भी बीच-बीच में हमने अनेक बड़े अस्पतालों के अनेक बड़े डॉक्टरों को दिखाया, मगर कोई स्थायी लाभ नहीं हुआ। इसलिये निराश होकर इलाज करवाना ही बंद कर दिया और इस सोच के साथ जिंदगी गुजरने लगी कि ‘यह तो सभी को होता है।’
 
मैं दो बच्चों की मां बन गयी। 45 की आयु पूर्ण कर ली। आंखों में चश्मा लग गया। मगद सफेद पानी जारी रहा। इस बार गुदाद्वार से रक्त आने लगा, खुजली होने लगी, गुदाद्वार के किनारे चिटक गये और उनमें भयंकर दर्द रहने लगा। मुझे लगा कि शायद मुझे बवासीर की तकलीफ हो गयी है? तुरंत डॉक्टर को दिखाया तो प्राथमिक उपचार के बाद जल्दी से जल्दी ऑपरेशन करवाने की सलाह दी। पतिदेव तत्काल सहमत हो गये। मैंने कुछ दिन वेट करने को कहकर ऑपरेशन टाल दिया।
 
इसी बीच मैंने अपनी तकलीफ मेरी फेसबुक मित्र सावित्री गुप्ता (बदला हुआ नाम) से इनबॉक्स में साझा की, उन्होंने सारी बात सुनकर कहा कि जयपुर के आदिवासी ताऊ से सम्पर्क करें, जिनका कहना है कि ‘ऑपरेशन पहला नहीं, अंतिम विकल्प है।’ मेरी मित्र ने कहा कि आदिवासी ताऊ ने बिना ऑपरेशन के उनके पति का बहुत पुराना बवासीर ठीक कर दिया था।
 
मैंने अपने पति से चर्चा के बाद आदिवासी ताऊजी को 8561955619 पर वाट्सएप किया। उन्होंने वाट्सएप पर मुझे बहुत सी वो बातें बतायी, जिनमें मुझे निम्न पंक्तियों ने सर्वाधिक प्रभावित किया ‘मैं कोई देवदूत या तांत्रित-मांत्रिक नहीं हूं। अत: मेरे पास तुरत-फुरत इलाज करने का कोई सीधा-सरल या शॉर्ट-कट तरीका या जादू नहीं है। मैं अपनी क्षमतानुसार, अपने पेशेंट्स को स्वस्थ करने की गंभीरतापूर्वक पूरी-पूरी कोशिश ही कर सकता हूं।’ …. ‘आप मुझ से गारंटीड या शर्तिया इलाज की 1% भी उम्मीद नहीं करें। वैसे भी जिसकी कोई गारंटी नहीं, उसका नाम जिंदगी है और जिसकी 100% गारंटी है, उसका नाम मौत है।’
 
आदिवासी ताऊजी की सारी बातें जानकार मैं इलाज के लिये सहमत हो गयी। दो माह के उपचार हेतु अग्रिम 5500 रुपये और 3000 रुपये काउंसलिंग चार्जेज के एडवांस जमा करवाये गये। सोनोग्राफी करवाकर वाट्सएप पर रिपोर्ट भेजी गयी। 16 दिन बाद आदिवासी ताऊजी ने मेरी सभी तकलीफों, मेरे शारीरिक एवं मानसिक लक्षणों, खानपीन आदि के बारे में फोन पर मुझ से 55 मिनट बात करके विस्तार से सारी जानकारी हासिल की और उन्होंने नयी पुरानी सभी प्रकार की तकलीफों के बारे में बेहिचक खुलकर बताने को कहा, तो मैंने कहा कि सफेद पानी की तकलीफ भी है, लेकिन ‘यह तो सभी को होता है।’
 
इस पर आदिवासी ताऊजी हंसे और उन्होंने उपचार शुरू करने से पहले समझाया कि सभी समस्याओं की जड़ है- ‘पाचन तंत्र का बीमार होना’ तथा औरतों के दिमांग में बैठी यह गलतफहमी कि ‘सफेद पानी तो सभी को आता है।’ कम से कम 4 से 6 महीने तो डाइजेशन सिस्टम तथा कब्ज को सुधारने में लगेंगे। इसके बाद अन्य तकलीफों का इलाज शुरू होगा, क्योंकि दवाइयां पचेंगी ही नहीं तो उनका शरीर पर असर कैसे होगा?
 
मैंने आधे-अधूरे मन से इलाज की हां करदी, लेकिन मुझे उनकी बातों और इलाज करने की रीति पर शुरू में पूर्ण विश्वास नहीं हुआ। शुरू में मुझे दो महीना की दवाइयों का पार्सल मिला, पहले ही दिन से पेट साफ होने लगा। कुल 6 महिने दवाई लेने के बाद, जीवन में पहली बार मैं अपने आप को कब्ज, सफेद पानी, बवासीर, दर्द, जलन, गैस, सिरदर्द आदि अनेक तकलीफों से पूरी तरह से मुक्त और स्वस्थ अनुभव कर रही हूं। शरीर में स्फूर्ति तथा ताजगी का अहसास हो रहा है। वजन भी 5 किलो बढ गया है। काश विवाह से पहले कोई आदिवासी ताऊ मिला होता?
 
सभी दवाइयां बंद किये 2 माह हो चुके हैं। यद्यपि आदिवासी ताऊजी का कहना है कि 3-4 महिने का अंतराल रखने के बाद दुष्प्रभाव रहित पोषक पाउडर्स का कुछ माह तक सेवन करना हितकर होगा। जिससे लीवर को ताकत मिल सके और पाचन तंत्र तथा इम्यूनिटी को पावरफुल बनाया जा सके। मैं 2 महिना और इंतजार करके फिर से पाचन तंत्र तथा इम्यूनिटी को पावरफुल बनाने वाली दवाइयां अवश्य लूंगी।
 
सबसे आश्चर्य की बात, आदिवासी ताऊ जी से सम्पर्क करने से पहले मैं जितने रूपये आने-जाने, जांच करवाने और डॉक्टरों की फीस चुकाने में खर्च कर चुकी थी, उससे भी कम रुपयों में, मेरा इलाज हो गया। धन्यवाद आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्त लाल मीणा जी का, जिन्होंने 12-13 साल की उम्र में शुरू हुई सफेद पानी की बीमारी से 46 साल की आयु में मुझे मुक्ति दिला दी। अब मैं यह कह सकती हूं कि ल्यूकोरिया ‘यह तो सभी को होता है।’, लेकिन ‘सही से इलाज नहीं होने के कारण सबका ठीक नहीं होता है।’
 
इस दौरान जो सबसे बड़ी बात मुझे और मेरे पति को समझ में आयी, डॉक्टरों के पास पेशेंट से बात करने और पेशेंट की बात सुनने के लिये समय ही नहीं होता है। जबकि आदिवासी ताऊजी पेशेंट को अपनी तकलीफ खुलकर बताने का पूरा-पूरा मौका देते हैं। अपनी ओर से सौ से अधिक सवाल पूछते हैं और सारी तकलीफों को गहराई से जानकर ही उपचार शुरू करते हैं।
 
मुझे लगता है और आदिवासी ताऊजी का भी मुझ से यही कहना रहा है कि ‘कब्ज ही मेरी सभी समस्याओं का मूल कारण था, जिसे अंग्रेजी दवाइयों ने अधिक बढा दिया।’ जबकि आदिवासी ताऊजी की ऑर्गेनिक देसी जड़ी-बूटियों तथा होम्योपैथक दवाइयों ने मेरी सभी तकलीफों को ठीक कर दिया। मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं। आदिवासी ताऊजी आपका दिल की गहराइयों से धन्यवाद।-श्रीमती डॉ. (प्रोफेसर) सरला माहेश्वरी, (बदला हुआ नाम) जबलपुर, मध्य प्रदेश।
 
मेरी टिप्पणी-रोगियों के स्वस्थ होने का राज:
 
~~~~~~~~बेशक पेशेंट अपने इलाज के लिए मुझे श्रेय देते हैं, लेकिन असल में, मैं इसका पूरी तरह से हकदार नहीं हूं। यह तो अमृततुल्य तथा दुष्प्रभाव रहित होम्योपैथिक दवाईयों और 100 फीसदी शुद्ध, ताजा एवं ऑर्गेनिक देशी जड़ी-बूटियों के गुणों का कमाल है। मेरा मानना है कि सभी डॉक्टर अपने रोगी का सही से इलाज करते हैं। जहां तक आयुर्वेद या देशी जड़ी-बूटियों के असर का सवाल है, तो वर्षों तक पंसारी (दवा विक्रेता) की दुकान की शोभा बढाने वाली सड़ी-गली और निष्प्राण वनौषधियाँ रोगियों के इलाज में सबसे बड़ी बाधा हैं। देशी जड़ी-बूटियों या आयुर्वेद की असफलता का यह एक बड़ा कारण है। मैं अपने पेशेंट्स को हमारे निरोगधाम पर पैदा की गयी ताजा और, या 100 फीसदी शुद्ध ऑर्गेनिक औषधियों का ही सेवन करवाता हूं। साथ मैं जर्मनी की सील पैक और, या विश्वसनीय फार्मेसी की होम्योपैथक दवाइयां ही पेशेंट्स को सेवन करवाता हूं। एक और महत्वूपर्ण बात ‘मैं रोगी को अपना ग्राहक नहीं, बल्कि अपना मकसद समझता हूं।’ इसलिये रोगी को पर्याप्त समय तथा बेहिचक खुलकर बात करने की पूरी आजादी प्रदान करता हूं। रोगी मुझ पर विश्वास करते हैं और नि:संकोच अपनी सभी तकलीफों को बतलाते हैं। बस सफल चिकित्सा का यही छोटा सा राज है। यद्यपि कुछ मामलों में मुझे भी पूर्ण सफलता नहीं मिलती है। अत: अपनी गलतियों को सुधारने हेतु और अधिक ज्ञानार्जन हेतु मैं हमेशा प्रयास करता रहता हूं। प्रस्तुत मामले में पूर्ववर्ती उपचारक ल्यूकोरिया का उपचार कर रहे थे, जबकि पेशेंट का पाचन तंत्र और इम्यून सिस्टम उपचार को सपोर्ट नहीं कर रहा था, क्योंकि असल में ल्यूकोरिया मूल बीमारी नहीं थी, बल्कि बीमारी का एक लक्षण मात्र था। बीमारी तो शरीर में अंदर विद्यमान थी।
 
*आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा*
देशी जड़ी-बूटियों, होम्योपैथिक और बायोकेमिक दवाइयों का परम्परागत उपचारक तथा दाम्पत्य+वैवााहिक विवाद एवं यौन समस्या समाधान सलाहकार (काउंसलर)। निरोगधाम, जयपुर, राजस्थान। बहुत जरूरी होने पर *10 बजे से 18 बजे के बीच 8561955619 पर बेहिचक काल करें। Only Online Services. No Clinical or OPD Services.* लेखन दिनांक: 02.02.2020.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *